पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/९६

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देव और बिहारी पर इससे क्या उनकी काव्य-गरिमा कम हो गई ? उत्तमता की जाँच में लोक-प्रचार का मूल्य बहुत कम है। यथार्थ कवि के लिये पंडित-प्रियता ही सराहनीय है। २-विहारीलाल विहारीलाल घरवारी माथुर ब्राह्मण थे । इनका जन्म संभवतः सं० १६६० में ग्वालियर के निकट वसुआ गोविंदपुर में हुआ था। अनुमान किया जाता है कि इनकी मृत्यु १७२० में हुई। इनका एकमात्र ग्रंथ सतसई उपलब्ध है। सतसई में ७१६ दोहे हैं. इसके अतिरिक्त इनके बनाए कुछ और दोहे भी मिलते हैं। कहते हैं, सतसई के प्रत्येक दोहे पर विहारीलाल को एक-एक अशी पुरस्कार स्वरूप मिली थी । विहारीलाल, जयपुराधीश मिर्जा राजा जयसिंह के राजकवि थे और सदा दरबार में उपस्थित रहते थे। कहते हैं, इनके पिता का नाम केशव था; परंतु ये कौन-से केशव थे, यह बात अविदित है। सतसई बड़ा ही लोकप्रिय ग्रंथ है। इसके स्पष्टी- करण को अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं- १. लल्लूलाल-लिखित लाल चंद्रिका ) २. सूरति मिश्र-कृत अमर-चंद्रिका ३. कृष्णकवि-कृत टीका ४. गद्य-संस्कृत टीका ५.प्रभुदयाल पांडे की टीका ये टीकाएँ हमारे ६. अंबिकादत्त व्यास-विरचित पुस्तकालय में विहारी-विहार ७. परमानंद-प्रणीत श्रृंगार-सप्तशती मौजूद हैं ८. एक टीका, जिसके केवल कुछ पृष्ट हैं। टीकाकार का नाम अविदित है