पृष्ठ:दो बहनें.pdf/१३८

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ज्ञातव्य

समाजधर्म और शाश्वतधर्म की जो त्रुटियाँ देखने में आती हैं वे उसका शोचनीय परिणाम ही प्रमाणित करने के लिये हैं। अर्थात् इतना ही दर्शाने के लिये कि स्खलन का पथ हमारा अभीष्ट पथ नहीं है। लेकिन देखा तो यह जाता है कि आजकल केवल इतने से ही भलेमानसों का क्षोभ शान्त नहीं होता। मेरे 'घर-बाहर' ('घरे-बाइरे') उपन्यास के सन्दीप या विमला ने कोई गौरवजनक सिद्धि नहीं पाई लेकिन फिर भी अभी उस दिन तक समालोचकों के दरबार में उन्हें सज़ा से रिहाई भी नहीं मिली। तार-स्वर से बारबार यही फ़रमाइश की जाती है कि जैसे भी हो, श्रेष्ठ आदर्श की रचना करना ही होगी। बचकानी ज़िद इसीको कहते हैं--जो चीनी की गुड़िया को बराबर अपनी लालायित रसना से चाटते ही रहना चाहती है!

'दुइ बोन' उपन्यास के संबंध में तुम मेरी अपनी व्याख्या भी कुछ सुनना चाहते हो। कहानी की भूमिका में ही मैंने भीतर का रहस्य खोल दिया है। आम तौर पर नारी पुरुष के सम्बन्ध से कभी माँ, कभी प्रिया या कभी दोनोंकी मिलावट हुआ करती है। हमारे यहाँ अनेक पुरुष ऐसे होते हैं जो बुढ़ापे तक माँ की गोद की आबहवा में ही सुरक्षित रहा करते हैं। वे स्त्री के निकट माँ का लाड़-प्यार ही उपभोग्य समझते हैं। विवाह से पहले बंगाल में वर कहता है, 'माँ, तुम्हारे लिये दासी लाने जा रहा हूँ': अर्थात स्त्री माँ के परिशिष्ट के रूप में ही आती है--अल्पा मेटर की पोस्टग्रैज्युएट

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