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पृष्ठ:दो बहनें.pdf/२१

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दो बहनें

उसका आसन दख़ल किया, उसका अचिन्तनीय आविर्भाव अधिकारियों के सबसे बड़े अफ़सर के संपर्क और सिफ़ारिश के बल पर हुआ था।

शशांक ने समझ लिया कि इस अर्वाचीन को ऊपर के आसन पर बिठाकर ख़ुद नीचे बैठकर उसे ही सारा कामकाज सँभालना पड़ेगा। अधिकारियों ने पीठ ठोंककर कहा, 'व्हेरी सारी मजुमदार, जितनी जल्दी होगा तुम्हारे लिये उपयुक्त स्थान जुटा देंगे।' दरअसल वे दोनों ही एक ही 'फ्रामेसन् लाज' के अन्तर्गत थे।

तथापि आश्वासन और सान्त्वना के होते हुए भी सारा मामला मजुमदार के लिये अत्यंत नीरस हो उठा। घर आकर उसने छोटी-बड़ी सभी बातों में खटर-पटर करना शुरू किया। अचानक उसकी नज़रों में आफ़िस-घर के कोने में पड़ा हुआ मकड़ी का जाला पड़ गया, चौकी पर पड़ा हुआ हरे रंग का पर्दा उसे बिल्कुल पसंद नहीं आता, यह भी अचानक याद आ गया। नौकर बरामदे में झाड़ दे रहा था, धूल उड़ रही है कहकर उसे ज़ोर की फटकार बताई। धूल ज़रूरी है, रोज़ ही उड़ती है परन्तु फटकार एकदम नई चीज़ थी।

इस असम्मान की ख़बर उसने स्त्री को नहीं बताई।