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दो बहनें

मन में ख़ूब उत्साह हुआ। इस कर्तव्य की ख़ातिर बाक़ी सब काम बन्द रखना पड़ेगा। कोई उपाय नहीं है। इसके सिवा यह जो शुश्रूषा का काम है सो तो उसके भावी डाक्टरी के काम से सम्बद्ध ही है, यह दलील भी उसके मन में उठी। ख़ूब आडम्बर के साथ उसने एक चमड़े से बँधा हुआ नोटबुक ख़रीदा। उसमें रोग के दैनिक ज्वारभाटे का हिसाब रखने के लिये आड़ी-तिरछी लकीर खींची गईं। बाद में चलकर डाक्टर उसे अनभिज्ञ समझकर उसकी अवज्ञा न करे, इसलिये उसने निश्चय किया कि जहाँ कहीं भी दीदी के रोग के सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा मिल जायगा, उसे पढ़ लेगी। एम. एस-सी की परीक्षा में उसका एक विषय शरीरतत्त्व था। इसलिये रोग-तत्त्व के पारिभाषिक शब्दों को समझने में उसे कष्ट नहीं होगा। अर्थात्दी दीदी की सेवा के उपलक्ष्य में उसका कर्तव्य-सूत्र टूट नहीं जायगा बल्कि और भी ज्यादा एकाग्र मन से कठिनतर प्रयोग के द्वारा वह उसी कर्तव्य का अनुसरण करेगी--यह बात मन में स्थिर करके उसने पढ़ने की किताबें और बही-खाता बैग में भरकर भवानीपुर के मकान में प्रवेश किया। दीदी की बीमारी को लेकर रोगतत्त्व-

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