88 दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता किये । ताको लौकिक वैदिक ते कहा ? सो यह भाव सर्वोत्तम जाननो । सो वह वैष्णव की लरिकिनी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपापात्र भगवदीय हती। तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं, सो कहां तांई कहिए। वार्ता ॥१०२॥ अब श्रीगुमाईजी के सेवक दोऊ भाई साचोरा ब्राह्मन, गुजरात में रहते तिनकी वार्ता कौ भाव कहत हैं - भावप्रकाश--ये सात्विक भक्त हैं। लीला में बड़े भाई को नाम 'वैष्णवी' है। छोटे भाई को नाम 'वल्लभा' है। सो दोऊ श्रीयसोढाजीकी अंतरंग सखी है । नंदालय की टहल में सदैव तत्पर रहत हैं । ये 'कुंजरी' तें प्रगटी हैं। ताते उनके भावरूप हैं। वार्ता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे हे। तव उन दोऊ भाई साँचोरा ब्राह्मन ने नाम-निवेदन पायो हतो । सो साँचोरा ब्राह्मन परम भगवदीय भए । सो उन को श्रीप्रभुजी सानुभाव हते । और वैष्णव में बोहोत स्नेह ममत्व हतो। सो एक समै गुजरात के वैष्णव एकत्र होइ कै श्रीगुसांईजी के दरसन को श्रीगोकुल को चले। सो मारग में दोऊ भाई साँचोरा रहत हुते, ता गाम में आए । सो वैष्णव जानि कै रात्रि को उहां बसे । तब उन दोऊ भाईन को वैष्णव पर परम स्नेह हतो, सो मिले, भेटें । श्रीकृष्ण-स्मरन किये । पाठे घर में देखे तो घर में कछु हतो नाहीं। तब अपने मन में विचार करन लागे, जो - अब कहा प्रकार कीजिये ? और वैष्णव तो अपने घर कृपा करि कै पधारे हैं, सो तो अपनो बड़ो भाग्य है । परि अपने घर में कछु सामग्री नाहीं है। वैष्णव अपनी गांठि को महाप्रसाद लेइंगे तो अपनी माला
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