पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१०४

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. एक वैष्णव धनिया की बेटी, रामानंदी से व्याही अधिकारी होइ ता लीला के स्वरूप में मगन है. तब अनन्य होई। तातें ज्ञानमार्ग तें भक्तिमार्ग विलक्षन है। वार्ता प्रसंग-२ और उनके घर श्रीठाकुरजी को सिंगार जब स्त्री करे तव तो मोर मुकुट, काछनी, धोती, उपरेना, वागा, पाग, फेंटा. कुलही, टिपारो, मल्लकाछ, पिछोरा या प्रकार भांति भांति के सिंगार करे। तव तांई इनको साक्षात् श्रीठाकुरजी श्री- कन्हैयालालजी के प्रतिबिंव के दरसन होई। और जब उन की पुरुष श्रीठाकुरजी की सेवा - सिंगार करे तव इन को श्रीरघुनाथजी को साक्षात् दरसन होई । सो याही भांति सों उन दोऊ जनेंन को सदैव अनुभव होंई। परि वे जो कार्य करे सो स्नेह संयुक्त करे । याही प्रकार उन के जन्म संपूरन वीते । उन जान्यो नाहीं, जो - या संसार में और कछ है। तातें उन दोऊ जनेंन की श्रीठाकुरजी ऐसो अनुग्रह किये । ताते वे दोऊ सें भगवदीय कृपापात्र हते । दोऊन को सर्वात्म भाव सिद्ध भयो हतो। भावप्रकाश -या वार्ता में यह संदेह है, जो - स्त्री तो पुष्टिमार्गीय हती सो उन मर्यादा स्वरूप को सिंगार क्यों कियो ? तहां कहत है, जो-बी में स्नेह प्रकार करि सर्वात्मभार सिद्ध भयो है । ताते उनके भाव तें या बम्प में पुष्टि को आविर्भाव होत है । रसात्मक प्रकार ते ठाकुर अनुभव जनावत हैं। सो ऐसो सर्वात्म भाव सिद्ध होइ नर पुष्टि मर्यादा बुद्धि रहत नाहीं । एक मरूप माव प्रगट होत है । नर्वत्र भावात्मा को ही अनुभव होत हैं। नो यह भक्तिमार्ग ऐसो विलक्षन है। मो श्रीआचार्यजी महाप्रभु 'चतुःश्लोकी' में कहा है। मो श्लोक- यदि श्रीगोकुलाधीगो घृतः मर्वात्मना आदि। ततः किमपरं ब्रूहि लौकिकवेदिकपि । त ज्ञा ने अपने हृदय में मर्वात्म भाव कारि श्रीगोपनायीन को घान्न