दो भाई साँचोरा ब्राह्मण, जिननें वैष्णवन को समाधान कियो ९७ तसई भगवद् आवेस सों या धड़ ने वैष्णवन को श्रीकृष्ण - मग्न कियो, ऐम जाननो। तब दरवाजे की ओर देखे तो सीस वंध्यो है। तब वैष्णव ने कह्यो. जो - यह सिर धड़ कौन कौ है ? पानें उन वैष्णवन ने पहचान्यो। तब उन वैष्णवन ने बड़े भाई साँचोरा ब्राह्मन सों पूछ्यो, जो - यह कहा कारन है ? तब बड़े भाई को हृदय भरि आयो । और वोहोत ही रोवन लाग्यो । ता पाऊँ सव वैष्णवन को दोऊ हाथ जोरि कै विधि पूर्वक सब समाचार कहे । पाठे सब वैष्णव उहां तें धड़ छोरि ल्याए । और सीस दरवाजे तें छोरि ल्याये । सो सीस धड़ के ऊपर धरयो । ता पाछे श्रीआचार्यजी महाप्रभु, श्रीगुसांईजी को स्मरन करि के नाम लें, चरनोदक-महाप्रसाद कंठ में मेल्यो. और मुख में मेल्यो । ता पाछे महाप्रसादी उपरेना हतो सो कंठ में वांध्यौ । तव वह सीस धड़ मिलि गयो । भावप्रकाग---यहां यह संदेह होई, जो- एसे कैसें हाई ? कटयो भयो मिर कमें जुरे ? नहां कहत हैं, जो - भगवदीय वैष्णवन के दय में प्रभु आप माक्षान् विराजन है। नाते उन में अलौकिक मामर्थ्य है। ये चाहे जो कनि सकत हैं। जैसे वेद व्यामजीने महाभारत के ममै मरे भए योहान को जियाग है । मो अपनी अलौकिक मामय मों। नाँतरु ये कमें मंभवे ? नाही प्रकार यहां हु जाननो। पा, वैष्णव उठि के ठाठे भए । तब सब वैष्णवन के उह पाँवन परयो । सो यह बात-समाचार सब गाम के राजा ने सुने । सो दरवान ने दोरि जाँइ के राजा मों कह्यो । तब राजा दोरि के देखन आयो । तब वह राजा देखे तो सब माँची बात है । सब ज्यों को त्यों सरीर सिद्ध भयो है । रंचक है
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