१३० दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता ता पाछे सवन ने महाप्रसाद लियो। और श्रीगुसांईजी आप भोजन करि मुख सुद्धार्थ आचमन करि पानें कल्यान भट कों महाप्रसाद की पातरि धरवाई । सो उनने महाप्रसाद लियो। पाठे श्रीगुसांईजी आप गादी तकियान के ऊपर विराजे। तव कल्यान भट हू तहां आए । सो साष्टांग दंडवत् करि वैठे । तव श्री- गुसांईजी कल्यान भट सों पूछे, जो - तुम कहा पढ़े हो ? तय कल्यान भट ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो - महाराजा- घिराज ! कछु व्याकरण देख्यो है। तव श्रीगुसांईजी आपने कह्या, जो-बोहोत ही आछौ है। ता पाछे श्रीगुसांईजी आप कल्यान भट को मारग के ग्रंथ पढ़ाए। सो सव ग्रंथ पढ़े। तव उन कल्यान भट को वोहोत ही विद्या स्फूर्त भई । सो सब बात को ज्ञान भयो । पाछे कल्यान भट श्रीगुसांईजी सों जो गोप्य वार्ता होइ सो पूछते । तब श्रीगुसांईजी आप कल्यान भट सों कृपा करि सव समझाय कै कहते। और अनेक भांति सों कथा भगवद्- वार्ता सुनावते । सो श्रीगुसांईजी आप उहां वोहोत दिनलों बिराजे। सो कल्यानभट ने अपने घरकेन को नाम-निवेदन करवाये । ता पाछे श्रीगुसांईजी आप उहां तें विजय किये। सो श्रीगोकुल कों पधारे । तब कल्यान भट हू श्रीगुसांईजी के साथ चले। सो अपनो सव कुटुंव लैकै श्रीगोकुलमें आय रहे। सो श्रीनवनीतप्रियजी आदि सातों स्वरूपन के दरसन किये । सो कल्यानभट कछूक दिन श्रीगोकुल में रहे। पाछे श्रीगोपाल- पुर आये । तहां श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये । ता पाछे आन्योरमें रहे। सो वे कल्यानभट श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हते।
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