१३२ दोसौ घावन चैप्णवन की वार्ता ऊपर मंदिर में पधारे। सो श्रीगोवर्द्धननाथजी कौ सेवा सिंगार किये । ता पाछे भोग धरि के कटोरा श्रीगुसांईजी देखे तो मंदिर में नाहीं है। तव श्रीगुसांईजी आप भीतरीयान सों पूछन लागे, जो - कटोरा कहां गयो ? तव श्रीगोवर्द्धननाथजी आपने श्रीगुसांईजी सों कह्यो, जो-दूध के नेग में काल्हि कसेंडी दोइ दूध ओछो हतो । सो ताही ते आन्योर में देवका के घर दूध पी के कटोरा धरि आयो हूं। श्रीगुसांईजी ने कल्यान भट सों जो वार्ता भई हती सो सब कही। जो- देवका के घर श्री- गोवर्द्धननाथजी आप कटोरा धरि आए हैं । सो तहां तें तुम ले आउ । तव कल्यानः भट श्रीगुसांईजी की आज्ञा मांगि के घर आय के देवका सों पूछे, जो-देवका ! कोई कछु गहने धरि गयो है ? तव देवका ने कल्यान भट सों कही; जो-धरि तो गयो है। तव कल्यान भट ने कही, जो-वे तो श्रीगोवर्द्धननाथजी आप हते । सो कटोरा गहने धरि गए हैं । ता. पाछे देवका ने कल्यान भट सों कह्यो,जो-तुम कटोरा दे आऊ। तव कल्यान- भट देवका तें कटोरा लै के आए। सो श्रीगुसांईजी आप के आर्गे राख्यो । तब श्रीगुसांईजी आपने कल्यानभट सों कही, जो-वाके भाग्य की कहा कहिये ? जो-जाको ऐसो सरल भाव । सो ताके घर श्रीठाकुरजी दूध के लिये कटोरा धरि आए। पछि राजभोग आर्ति करि अनोसर करि श्रीगुसांईजी आप नीचे पधारे । सो अपनी बैठक में गादी तकियान के ऊपर बिराजे। तब सव वैष्णव श्रीगुसांईजी के दरसन को आए । सो दरसन करि के अपने अपने घर को मए । ता पाऊँ श्री- गुसांईजी आप दूधघरिया को बुलाये के वासों बोहोत खीझे।
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