पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१४६

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कल्यान भट्ट, खंभालिया के १३३ जो-ऐसो काम कवहू नाहीं करिये । जो-श्रीगोवर्द्धननाथजी आप के नेग में सो घटाइये नाहीं। तव दूधघरीया ने श्रीगुसां- ईजी सों विनती कीनी, जो-महाराजाधिराज! आप की आज्ञा होइगी सोई हम करेंगे। सो ऐसी कृपा देवका के ऊपर आप करते । सो वे कल्यान भट श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हते। घार्ता प्रसंग-३ और एक समै कल्यान. भट ने श्रीगुसांईजी आप सों विनती कीनी, जो- महाराजाधिराज श्रीगोवर्द्धननाथजी आपके निकटवती जे वैष्णव रहत हैं, सो एक डबुवा जल कौ भरि कै जो समर्पत हैं, और एक डबुवा जल को ल्याय कै जो आप को स्नान करावत हैं। और कोई वैष्णव आप को जल- बीड़ा ल्याय कै अरोगावत है। और एक सोंधो लगावत है। और एक वैष्णव पंखा करत है । और एक तेल लगावत है। सो आप के सेवक अनेक प्रकार सों श्रीठाकुरजी (और) आपकी सेवा करत हैं। सो वैष्णव मोकों कहत हैं, जो - यह घर हमारो । अव हमारो अंगीकार करेंगे। ता पानें उन सों सैने कह्यो, जो- अव ताई तुम्हारो कछु करनो वाकी रह्यो है। जो, साक्षात् ईस्वर को तेल लगावत हो। और आरोगावत हो। और कहा बाकी रह्यो है ? जो-यथासक्ति सामग्री करिके श्री- ठाकुरजी आप कों समर्पत हो सो अंगीकार करत हैं। तातें महाराजाधिराज! मैं उन वैष्णवन सों ऐसें कह्यो। तव श्रीगुसांई- जी आप कल्यान भट सों कहे, जो- अव तो इतनो वाकी रह्यो है, जो तुम तो जानत नाहीं हो । तव कल्यान भट ने श्री-