पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१५०

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दो भाई पटेल, राजनगर के १३७ सुनाये । पाठें वे दोऊ भाई भाइला कोठारी के घर नित्य भग- वद् वार्ता सुनिवे को आवते। सो वे दोऊ भाई जो सुनते सो सव कंठाग्र करि लेते । ऐसें करत केतेक दिन भए । वा प्रसंग-२ पाछे एक दिना उन दोऊ भाई पटेलन ने भाईला कोठारी तें कही, जो-नाम तो तिहारे सत्संग तें पायो, परि अव तो ब्रह्मसंबंध होइ तो आछो । तव भाइला कोठारी ने कही, जो- तुम श्रीगोकुल श्रीगुसांईजी के पास जाँइ कै ब्रह्मसंबंध करि आवा । पाछे इन दोऊ भाईन को ब्रह्मसंबंध की बड़ी आतुरता भई । पाछे अपने बेटान को घर को कामकाज सोपि के वे दोऊ भाई पटेल ब्रज में आए । सो ता समै श्रीगुसांईजी श्री- ठकुरानी घाट 4 संध्यावंदन करत हते । ता समै वे दोऊ भाई आरति के भरे श्रीगुसांईजी को जाँइ के दंडवत् किये । तव श्रीगुसांईजी श्रीमुख तें कहे, जो-इन वैष्णवन को तो राजनगर में देखे हते । तव दोऊ पटेलने हाथ जोरि के विनती कीनी, जो - राज ! आपने कृपा करि भाईला कोठारी के घर दरसन दिये और नाम सुनाए । अव तो कृपा करि के ब्रह्मसंबंध कर- वाइये। तव ताही समै श्रीगुसांईजी कृपा करि श्रीमुख तें आज्ञा किये, जो-न्हाउ। तव दोऊ भाई न्हाय कै कोरे वस्त्र पहरि कै हाथ जोरि कै ठाढ़े भए। तव श्रीगुसांईजी कृपा करिके समर्पन करवाए । पाछे आप मंदिर में पधारे। मो राजभोग सराय के दरसन करवाए । पाछे राजभोग - आर्ति किये । सो ये दोऊ भाई दरसन करि के परम आनंद पाए। श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन अति आनंद सों किये। पाछे श्रीगुसांईजी श्रीनवनीत-