पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१४९

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दोसी बावन वैष्णवन को वार्ता भगवदीय वैष्णव को आदर करत रहे । भगवदीय वैष्णव को धर्म, अपने स्वरूप को, ऐसे विचार करत रहे । सो ऐसे लक्षन होइ तिनकों उत्तम भगवदीय जाननो । तव यह श्रीगुसांईजी के श्रीमुख के वचन सुनि के कल्यान भट बोहोत प्रसन्न भए । तब कहे, जो-वैष्णव को स्वरूप तो ऐसो ही है । सो वे कल्यान भट श्रीगुसांईजी के ऐसें परम कृपापात्र भगवदीय हते । तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए। वार्ता ॥१०॥ - अब श्रीगुमाईजी के सेघक दोई भाई पटेल, राजनगर में रहते, मिनकी थार्ता को भाव कहत हैं- भावप्रकाश--ये दोऊ सात्विक भक्त हैं । लीला में इनके नाम 'कांची' 'कामना' हैं । ये दोऊ श्रीचंद्रावलीजी की सखी मैना हैं, उन तें प्रगटी हैं । तातें उनके भावरूप हैं । सो बड़ो भाई कांची को प्रागट्य और छोटो भाई कामना को प्रागटय जाननो। वार्ता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी राजनगर पधारे हे । सो भाईला कोठारी के घर विराजत हते।सो राजनगर में दोई भाई पटेल गृहस्थ हते । दोऊन की स्त्री तथा बेटा-बेटी हू हते । सो उन कुनवीन ते भाईला कोठारी को मिलाप हतो। सो भाईला कोठारी के घर वे नित्य आवते। सो इन दोऊ भाईन को श्रीगुसांईजी के दरसन भए। सो महा अलौकिक दरसन भए । तव उननें भाईला कोठारी सों बिनती करी, जो-हम को तुम श्रीगुसांईजी के पास नाम दिवावो । तब भाईला कोठारी श्रीगुसांईजीतें विनती किये, जो-महाराज! ये दोऊ भाई नाम पायवे की बिनती करत हैं। तब श्रीगुसांईजी कृपा करि कै उन दोऊ भाईन को नाम