१५४ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता आपकौ चोर हूं। और यह दीवानगीरी आप की दई भई है । पाछे श्रीगुसांईजी उहां तें द्वारिका पधारे । भावप्रकाश-या वार्ता में यह जतायो, जो - जीव कैसो हु दोप सों भरयो क्यों न होंई, परि जो - सरनि आवत है ताकों प्रभु आप निश्चय अंगीकार करत हैं । तातें पुष्टिमार्ग में सरनि मुख्य है । सो वह चोर वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भयो। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥ ११२॥ अब श्रीगुसाईली के सेवक तानसेन बामन, पात्साह के गवैया, ग्वालियर के, तिनकी वार्ता कौ भाव कहत है- भावप्रकाश- -ये राजस भक्त हैं । लीला में इनको नाम 'दीपा' है। सो 'दीपा श्रीठाकुरजी को अंतरंग सखा है। ये 'मनसुखा' गोप तें प्रगट्यो है, तातें उन के भावरूप हैं। ये तानसेन ग्वालियर में एक ब्राह्मन के जन्मे । सो घरस पांच के भए । तव इन को एक म्लेच्छ को संग भयो । सो वह म्लेच्छ संगीत-कला में बोहोत निपुन हतो । सो वाने तानसेन को संगीत सिखायो । सो तानसेन बोहोत सुंदर गावन लागे । ता पाछे तानसेन सरस्वती की आराधना किये। तव सरस्वती वाकों दरसन दे कह्यो, जो - कछू मांगि। तव तानसेन ने कह्यो, जो - मोकों राग सिद्ध होई । तव सरस्वती कहे, जो - 'तथास्तु' । या प्रकार सरस्वती तानसेन कों वर दे अंतर्धान भई। पाछे तानसेन गावें तव हिरन उनके निकट दोरि आवें ऐसो सुंदर गावन लागे। सो एक समय ये दिल्ली गए । सो पात्साह के पास गए। सो पात्साह को गानो सुनाए । सो पात्साह उन को गानो सुनि वोहोत प्रसन्न भयो। सो बोहोत द्रव्य दियो । पाछे पात्साह तानसेन को कहे, जो-तू हमारे पास रहे। पाछे इन कौ महिना करि दियो । सो ता दिन तें तानसेन पृथ्वीपति के पास रहे। सो दरबार में जान लागे । पात्साह को गानो सुनावे । या भांति रहे । पाछे जो-कोउ गायवे में समुझे ताके पास तानसेन जाते । सो राज- महाराजा, सत-महंत सब कोऊ इन को आदर करते। पात्साह को गवैया जानि बोहोत द्रव्य देते । ऐसें करत तानसेन जगत में प्रसिद्ध भए ।
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