पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१७९

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दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता ता पाछे घर आए । सो उन दोऊन के स्त्री हती। और वेनी- दास बड़े हते । सो उनके दोई पुत्र हते । और दामोदरदास के एक पुत्र हतो। और तीन्यों बेटान के वह घर में हती। सो इन दोऊ भाईनने दुकान तथा घर बेटान कों सोंपि दीनो। और कही, जो-हम तो ब्रजयात्रा कों जात हैं । सो प्रभुनकी ईच्छा तें पांच सात वरस में आवेंगे। तुम हमारी वाट मति देखियो । तुम अपने घर सावधान रहियो। सो ऐसें सब निवृत होइ कै वे दोऊ भाई ब्रज कों चले । सो सूधे श्रीगोकुल आए । सो उत्थापन के पहिले प्रभु पोढि के उठे हते । ता समै आए । सो श्रीगुसांईजी के दरसन किये । तव श्रीगुसां- ईजी ने पूछी, जो-बेनीदास, दामोदरदास ! तुम कब आए ? तब इन विनती करी, जो- राज ! अव ही आए। तव श्री- गुसांईजी ने पूछी, जो-वेनीदास ! महाप्रसाद तो नहीं लिये होंईगे ? तब बेनीदास ने कही, जो-राज के दरसन किये विना कैसें लेई ? तब श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो - रात्रि कों महाप्रसाद यहांई लीजियो । पाछे बेनीदास, दामोदरदास एक घर लिये । तामें चीज बस्तु सब धरि के उत्थापन के दर- सन किये । पाठे सातों मंदिरन में दरसन किये । ता पाछे श्रीनवनीतप्रियजी के सेन के दरसन किये। पाछे श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में पधारे । तब आज्ञा किये, जो- बेनीदास ! तुम दोऊ महाप्रसाद लेऊ । तब इन बिनती कीनी, जो- राज ! प्रथम तो आप आरोगो। पाछे हम लेइंगे। तब श्रीगुसांईजी आप आरोगे। पाछे इन दोऊ भाईन कों जूंठनि की पातरिधरी।सो बेनीदास दामोदरदास ने महाप्रसाद लीनो।