. वेनीदास, दामोदरदास, दो भाई बनिया, सूरत के अब श्रीगुसांईजी के सेधक वेनीदास, दामोदरदास, दोऊ भाई, वनिया, सुरंत में रहते, तिनकी वार्ता को भाष कहत हैं। भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं । लीलामें 'धीरा' 'धीरा'. इन के नाम हैं। सो वीरा-धीरा, विसाखाजी की सखी सोरसेनी है, तिनकी दोऊ सखी हैं। उन ते प्रगटी हैं, तातें उन के भावरूप हैं । सो बेनीदास 'वीरा' को प्रागटय और 'धीरा' दामोदरदास भए । ये दोऊ सूरत में एक द्रव्यपात्र वनिया के जन्मे । सो वह वनिया कपड़ा की दुकान करतो । सो ये दोऊ भाई बरस दस-बारह के भए तब माता-पिताने दोऊन को व्याह कियो । ता पाछे केतेक दिन में इनके माता-पिता मरे। तब दोऊ दुकान करन लागे। घाता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी राजनगर में भाईला कोठारी के घर विराजत हते । और वेनीदास दामोदरदास दोऊ भाई सूरत में वजाज की दुकान करते । सो कपड़ा खरीदन कों राजनगर आए । सो भाईला कोठारी सों इन कौ व्यौहार हतो। सो ये भाईला कोठारी कों मिलिवे को असारुवा आए । तव दोऊ. भाइन को श्रीगुसांईजी के दरसन भये । सो महा अलौकिक दरसन भए । तव दोऊ भाई भाईला कोठारी सों कहे, जो-तुम हम को इनके सेवक करावो तो आछौ । तव भाईला कोठारी प्रसन्न व्है श्रीगुसांईजी सों विनती किये, जो- राज ! कृपा करि कै इनकों सरनि लीजिए। ये सेवक होंन की विनती करत हैं। तव श्रीगुसांईजी ने उन दोऊ भाईन कों नाम सुनायो । ता पाछे दोऊ जनें केतेक दिन राजनगर में रहि के पाछे सूरत गए। सो नित्य रात्रि को भगवद्वार्ता मंडली में जाते। सो एक दिना उन दोऊ भाईनने हाट पै विचार कियो,. जो-ब्रज में जॉई कै श्रीगुसांईजी के दरसन करे तो आछौ ।. वार्ता प्रसंग-२ -
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