दोसौ वावन वैष्णवन की वार्ता - आयो होइगो। सो हों तो हतो नाहीं। सो सीत में याके प्रान गए। सो यह मोकों भारी अपराध लग्यो। तातें अब कहा करनो। या भांति वह क्षत्री चिंता करयो करे। वात प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी आप पूर्व देस श्रीजगन्नाथ- रायजी के दरसन करिवे कों पधारे हते। तहां वा क्षत्री कों श्रीगुसांईजी के दरसन भए । तव वा क्षत्री के मन में विचार भयो, जो - मैं इन की सरनि जाउंगो। तव वा क्षत्री वैष्णव ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो - महाराजाधिराज ! कृपा करि कै मोकों नाम सुनाइए। और मेरो अपराध क्षमा करिए । तब श्रीगुसांईजी ने श्रीमुख ते आज्ञा कीनी, जो तू स्नान करि आउ । तब वह क्षत्री वैष्णव स्नान करि आयो। तव श्रीगुसांईजी आप वा क्षत्री के ऊपर कृपा करि कै नाम सुनायो। तव वा क्षत्री वैष्णव ने यथासक्ति भेट करी। ता पाछे श्रीगुसांईजी आप उहांई रसोई करि कै श्रीठाकुरजी कों भोग धरयो। पाठे भोग सराय आप भोजन किये। और सब ब्रजवासी टहलुवान को महाप्रसाद लिवायो। और वा क्षत्री वैष्णव को पातरि धरी । तब वा क्षत्री वैष्णव ने महा- प्रसाद लियो । और रात्रि को उहाई सोई रह्यो। पाठे श्री- गुसांईजी आप पोंढ़े । ता पानें प्रातःकाल आप उहां तें विजय किये । सो पुरुषोत्तम क्षेत्र जगन्नाथरायजी के दरसन को आप पधारे । सो केतेक दिन उहां रहि कै दरसन किये। ता पाछे श्रीजगन्नाथरायजी सों बिदा होंइ कै चले। सो कितनेक दिन में श्रीगोकुल पधारे। सो श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन किये। ता पाठें एक समै वह क्षत्री वैष्णव के साथ में श्रीगोकुल
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२१
दिखावट