पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२२४

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२०७ एक सेठ, खरबूजाबारी, आगरे को जो - हों ब्राह्मन भयो हों तो या छाछ को दूध करि दीजो । ता पाछे घरी एक पाछे देखें तो छाछ कौ दूध भयो है । तव तो सव ब्राह्मन आश्चर्य करन लागे । पाछे वा दूध की खीरि करि सव ब्राह्मन को खवाय विदा किये । तव सव वा मोची कों दंडवत् करि अपने अपने घर गए । ता दिन पाछे वा मोची कों कोऊ दुःख न देतो। सव कोऊ उन को वोहोत आदर करते। भावप्रकाश-या वार्ता कौ अभिप्राय यह है, जो - वैष्णव को स्वरूप महा अलौकिक है । काहे तें, जो - वैष्णवन के हृदय में परब्रह्म श्रीकृष्ण साक्षात् सदा- सर्वदा विराजत हैं। तातें उन में अलौकिक ब्राह्मनत्व सिद्ध है। सो यह मोची श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो । तातें उन की वार्ता कहां तांई कहिए । ॥१२४॥ अव श्रीगुसांईजी को सेवक एक सेट, आगरे में रहतो, तिनकी वार्ता को भाष कहत हैं- भावप्रकाश--ये राजस भक्त हैं । लीला में इनको नाम 'उल्लासिनी' है। ये 'शशीकला' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप है । ये आगरे में एक द्रव्यपात्र चनिया के जन्मे । सो वा बनिया को व्योहार में रूपचंदनंदा सों बोहोत मिलाप रहतो। सो रूपचंदनंदा आचार क्रिया वह चनिया रूपचंदनदा सों बार-बार कहे, जो-मोकों तुम्हागे मार्ग आछौ लागत है। तात मोकों वैष्णव करो । परि रूपचदनंदा या वात को कछ् उत्तर दे नाहीं। काहेतें, जो - रूपचंदनंदा जाने, जो दैवी होडगो तो आपु ही ते सरनि होइगो । पाछे कक दिन में श्रीगुसांईजी रूपचंदनंदा के घर पधारे। तर वह बनिया श्रीगुसांईजी के दरसन पायो। तब वा बनिया ने रूपचंदनंदा सों कह्यो, जो - अब मोकों श्रीगुसांईजी को सेवक कराइए । तर रूपचंदनंदाने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो- महाराज ! यह बनिया सेवक होन की कहत है । तब श्री- गुसांईजी वाकों कृपा करि नाम निवेदन कराए । पाठे वह बनिया घर आइ अपनी स्त्री-बेटा दोऊन को रूपचंदनंदा के घर ल्यायो। पाछे उन को श्रीगुसांईजी के सेवक कराए । नाम-निवेदन करवाए । तब वे दोऊ वैष्णव भए । पाछे ये तीनों