२३४ दोगी बावन वैष्णवन की वार्ता पधराय देऊ। सो वा वैष्णव ने वामें की सामग्री-द्रव्य सव श्री- मथुराजी जाँई श्रीयमुनाजी में पधराय दीना । सो वामें की कछ श्रीठाकुरजी के काम आई नाहीं। सो वह क्षत्री को श्रीगुसांईजी के वचन को ऐसो दृढ़ विश्वास हतो। भावप्रकाश-यामें यह जतायो, जो-आसुरी द्रव्य लिये ते भगवत्सेवा में प्रतिबंध होई । बहिर्मुखता प्राप्त होई । तातें आसुरी द्रव्य सर्वथा ग्रहन करनो नाहीं। और यह जताए, जो - गुरु के वचन में वैष्णव को सर्वथा विश्वास करनो । सो वह क्षत्री श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो । तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए । वार्ता ॥१३२॥ अघ श्रीगुमाईजी के सेयक दोई भाई पटेल, गुजरात में रहते, तिनकी वार्ता को भाष कहत भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं । लीला में इन के नाम 'मक्तिनि' और 'आवेसिनी' हैं। ये 'ब्रजमंगला' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप हैं । सो बड़ो भाई भक्तिनि को प्रागटय है, और छोटो भाई आवेसिनी को प्रागटय जाननो । ये दोऊ गुजरात में एक गाम में एक पटेल कुनवी के जन्मे । सो बरस तीस-पैंतीस के भए तब इन के मा-बाप मरे । पाछे ये तीरथ को चले। सो द्वारिकाजी आए । सो ता समै श्रीगुसांईजी आप द्वारिकाजी विराजत हते । सो तहां श्रीगुसांईजी नित्य श्रीसुबोधिनीजी की कथा कहते। सो इन दोऊ भाई सुने. जो-अमूक ठौर कथा होत है । सो दोऊ कथा सुनिवे को आए । सो कथा सुनत ही इन दोऊन के मन में यह आई, जो-इन के सेवक हूजिए । 'पा, इन दोऊ श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो-महाराज! हम को सेवक कीजिए । तव श्री- गुसांईजी दोऊन की आरति देखि दोऊन कों नाम-निवेदन कराय सेवक किये। पाछे दोऊन ने विनती कीनी, जो-महाराज ! अव कहा कर्तव्य है ? तब श्रीगुसां- ईजी दोऊन सों कहे, जो-तुम भगवत्सेवा करो। और वैष्णवन को संग करो। तब दोऊ भाई कहे, जो-महाराज ! कृपा करि भगवत्सेवा पधराइ दीजिये । तब श्रीगुसांईजी दोऊन को एक लालाजी को स्वरूप पधराय दिये । पाछे सेवा की सब
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