पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२४८

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एक वनिया वैष्णव, जानें भोग में चेली धरी २३१ . अव श्रीगुमाईजी की सेवा एक वनिया धैष्णव, राजनगर को. जाने भोग में चेली धरी, तिनको धार्ना को भाव कहन है- भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं लीला में इन को नाम 'अनम्या है। ये 'नंदा' ते प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप है ये राजनगर में एक द्रव्यपात्र बनिया के जन्म्यो। सो उह बनिया श्री- गुसांईजी को सेवक हुतो। सो वाने अपने बेटा को श्रीगुसांईजी को सेवक करायो । सो यह बरस बीस को भयो तब याकौ पिता मरयो । पाछे यह भाईला कोठारी के उहां नित्य भगवद्वार्ता सुनिवे जाई। तब याके मन में आई. जो- हों श्रीठाकुरजी पधराई सेवा करों तो आछौ । वार्ता प्रसग-१ सो एक समे गुजरात को संग ब्रज में आयो । सो श्री- गोकुल में श्रीगुसांईजी के दरसन करि कै कछ दिन रहि के श्रीनाथजीद्वार गयो । सो वा संग में वह वैष्णच हूँ आयो । सो वह नित्य श्रीनाथजी के मंदिर में सेवा करिवे को जातो । सो सब सेवा नजरि में राखे । सो एक दिना राजभोग आयवे को समय हतो। ता समै मुखिया भीतरिया ने जलघरियान तें कही, जो- चेली खासा करि कै लावो। तब जलपरियान ने चेलीन कौ दोना भरयो हतो सो भीतरियान को दीनो । सो इन वैष्णव देख्यो । सो अपने मन में विचारी, जो - यहू श्रीठाकुरजी के राजभोग में आवत हैं। सो कितने दिन पाऊँ वह संग श्री- गुसांईजी सों श्रीनाथजी सों विदा होइ के गुजरात चलन लाग्यो तव वह वैष्णव श्रीगुसांईजी सों विनती कियो, जो-महाराज ! मोकों सेवा पधराइ दीजिए। तव श्रीगुसांईजी वाकों एक लालजी को स्वरूप पधराइ दिए । सो वह वैष्णव अपने ठाकुर को ले वा संग में चल्यो। सो कछक दिन में अपने घर आयो। तर वैष्णव ने चेली गढ़वाई । सो श्रीठाकुरजी को राजभोग धरे तामें एक