पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२६०

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एक क्षत्री, आगरे को २४५ अपेक्षा मन में आवें सोइ अन्याश्रय है । तातें भगवान सिवाय अन्य की कामना ना करे । और स्नेह को म्वरूप जनाए । जो साचे स्नेही तो एक नंदनंदन ही हैं। और सब मतलब के हैं। सो भाव या पढ में जाननो गग . सोफ्ट साँचे स्नेही श्रीनंदकुमार। और नहीं कोई दुःख की बेली सत्र मतलब के यार ।। मनुष्य जाति को नहीं भरोसो छिनु विहार छिनु पार । चित वचन को नहीं ठिकानो छिनु छिनु पृथक विचार । मातपिता भगिनी सुत दारा रति न निभत एकतार । सटा एकरम तुमहीं निभावो 'रसिक' प्रीतम प्रतिपार॥ ताते श्रीगुसांईजी आप पूरन पुरुषोत्तम हैं । सोई गांचे स्नेही हैं । सो या वैष्णव कों या प्रकार अन्याश्रय तें छुडाये। ताते एक दृढ़ प्रीति उनही मों कग्नी । सो वह विरक्त के ऊपर श्रीगुसांईजी आप ऐसी कृपा किये । तातें वह वैष्णव वड़ो भगवदीय हो। सो इनकी वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥१३४॥ अब श्रीगुसांईजी को मेधक एक अत्री वैष्णव, आगरे में रहन हुतों, ताकी बार्ता को भाष कहत है- भावप्रकाश-ये राजस भक्त हैं। लीला में इन को नाम 'नागर-रंजनी है । सो नागर जो- श्रीठाकुरजी तिनके मन को ये रंजन करत हैं। ये 'ब्रजमंगला तें प्रगटी हैं। तातें इनके भावरूप हैं। वार्ता प्रमग-१ सो वाके आगरे में वजाज की दुकान हती । सो वाके यहां वस्त्रन को व्यौपार हतो । सो वाके वस्त्र वोहोत ही उत्तम तें उत्तम आवते । सो श्रीगुसांईजी एक समै आगरा पधारे । सो मारग में याकों श्रीगुसांईजी के दरसन भए । सो दरसन होत ही याके मन मे आई, जो-हों इन को मेवक हो तो आछौ । पाऊँ श्रीगुसांईजी आप तो रूपचंदनंदा के घर पधारे।