पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२६३

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२५० दोसौ बायन वैष्णवन की वार्ता श्रीहस्त सों धरे। तब वह क्षत्री वैष्णव महाप्रसाद ले के पाठे श्रीगुसांईजी की बैठक में आयो, दंडवत कियो । तव श्रीगुसांईजी आप वाकों वीरा दे के विदा कियो । सो वह क्षत्री आगरे में अपने घर आयो। भावप्रकाग--या वार्ता की अभिप्राय यह है. जो-श्रीयमुनाजी के विप सकल लीला विद्यमान है । मो श्रीआचार्यजी, श्रीगुसांईजी की कृपा होई तत्र या प्रकार दरसन होई । तातें उन को एक दृढ़ आश्रय कन्नो। और वैष्णव को श्री- यमुनाजी की स्वरूप अलौकिक करि जाननो, यह जताए । सो वह क्षत्री वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भग- वदीय हो । ताते इनकी वार्ता कहां तांई कहिए । वार्ता ॥ १३५॥ अब श्रीगुमाईजी के सेवक मेहा धीमर गयल के पास गोपालपुर गाम है, तहां रहती, तिनकी पात को भाय फात है- भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं। लीला में उनको नाम 'मंजिरा' है । ये 'सुमन्दिरा' तें प्रगटी है । ताते इनके भावरूप है । ये रावल के पास 'गोपालपुर' गाम है, तहां एक धीमर के जन्म्यो । सो वरस वीस को भयो तव याको व्याह भयो। पाछे इनके मा-बाप मरे । सो ये मलाह को धंधा करन लाग्यो । सो ये श्रीयमुनाजी में मछली मारि अपनो निर्वाह करतो। वार्ता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी गुजरात कौ परदेस करि के पाछे श्रीगुसांईजी गोवर्द्धन पधारे । तहां श्रीनाथजी की सेवा सिंगार करि कै दिन तीन तहां रहे । पाछे चोथे दिन राजभोग आरति करि श्रीनाथजी कों अनोसर कराय के श्रीगोकुल पधारिखें कौ विचार करयो । तहां तें घोड़ा मैं असवार होइ के दसपांच वैष्णव संग ले के पधारे । सो 'मई के घाट पार उतरि कै संध्या