पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२६७

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२५४ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता कार श्रीगुसांईजी करेंगे । या भांति सो आप आजा करी है। तब मेहा ने कही, जो - अब हम कहां जाय । याही ठौर बैठे हैं । श्रीगुसांईजी के डेरा की चाकी देत हैं। नींद आवेगी तो इहां सोय रहेंगे। तुम हमारी चिंता मति करो। तव ब्रजवासी अपने कामकाज को गयो । श्रीगुसांईजी आपु पाढे । और मेहा और वाकी स्त्री सगरी रात्रि जागत रहे । पाछे प्रातःकाल श्रीगुसांईजी श्रीयमुनाजी को पधारे । तब मेहा स्त्री सहित देहकृत्य करि के विनती करी, जो-महाराज! मेरो अंगीकार करो । तव श्रीगुसांईजी मेहा सों कहे, जो जीव की तृ हत्या करत है । तेरो अंगीकार कैसे करें ? तव मेहा ने कही,जो-महाराज! आज पाछे जीव कवह न मारूंगो। तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - अपनो निर्वाह कौन प्रकार करेगो? तव मेहा ने विनती करी, जो - महाराज ! मैं खेती करि के अपनो निर्वाह करूंगो । तव श्रीगुसांईजी मेहा सों पूछे, जो- स्त्री तेरे अनुकूल है ? तव मेहा ने कही, जो- मोसों अधिक धर्म स्त्रीमें है । याही की प्रेरना सों मैं आप की सरनि आयो हूं। यह सुनि कै श्रीगुसांईजी प्रसन्न भए । तव आज्ञा करी, जो - तुम दोऊ जने न्हाइ आओ। तव श्रीगुसांईजी दोऊन को नाम सुनाये । तव मेहा ने रुपैया एक वैष्णव सों पायो हतो सो श्रीगुसांईजी की भेंट करयो। और कह्यो, जो - महाराज ! यह रुपैया आपही के वैष्णवन ने मोकों दियो है। तासों यह आप को है। और चारि चारि पैसा और दोऊ जनेंन और भेंट करे। पाठे मेहाने श्रीगुसांईजी सों बिनती करी, जो-महाराज! मोकों भगवत्सेवा पधराय देऊ । तब श्रीगुसांईजी पूछे, जो-तेरो 2