पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२७

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२० दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता वोल्यो, जो - कहा तुम्हारो मार्ग संसार ते न्यारो है ? सो ऐसें संसार में नाहीं है ? तव वा वैष्णव ने खंडन ब्राह्मन सों कह्यो, जो - हम गनेस, देवी, सिव काहू देवता को नहीं मानत । सव देवता तो श्रीठाकुरजी की विभूति हैं । तव वा खंडन ब्राह्मन ने कह्यो, जो - सव एक ही हैं। जो - चलो पंडित ब्राह्मन सों पूछो । जो - मेरी वात सत्य है। तव उन वैष्णव ने खंडन ब्राह्मन सों कह्यो, जो हमारे पंडित ब्राह्मन सों और देवतान सों कहा काम है ? जो - हम तो नंदनंदन बिनु और काहू कों जानत नाहीं । सो याही तें तृ काहे को माथो उठावत है ? तातें यहां ते जात रहि । सो ऐसें कहि कै वा खंडन ब्राह्मन कों हाथ पकरि कै उठाय दियो । तव खंडन ब्राह्मन बाहिर जाँइ के दस-पांच ब्राह्मनन सों मिलि के उन वैष्णवन की निंदा करन लाग्यो । ता पाठे सव वैष्णव वैठे हते तहां जाँइ के ऊपर तें भाठान की मार करन लाग्यो । ता पाठे सव वैष्णव उठि के अपने घर गए। और कीर्तन तो रहि गए। ता पाछ सव वैष्णव सोय रहे । सो जव अर्द्धरात्रि भई तब कोऊ चारि जनें आय कै वा खंडन ब्राह्मन को खाट ते ओंधो करि कै वोहोत मारयो । और सगरे सरीर की खाल और हाड़ न्यारे किये । ऐसें वोहोत मारयो । तव वह खंडन ब्राह्मन तो वोहोत ही बिलबिलायो। और वोहोत रोवन लाग्यो, और कह्यो, जो - तुम मोकों क्यों मारत हो? तब उनन कही, तेने श्रीगुसांईजी के सेवकन की निंदा क्यों करी ? और कीर्तन में विघन क्यों कियो ? सो याही तें हम तोकों मारत हैं। और वैष्णव तो परम कृपापात्र भगवदीय हैं। और श्री-