पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२९१

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२८२ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता स्य चलनो। उह कहे तसे करनो। हृषिकस श्रीगुसांईजी के सेवक हैं. कृपापात्र हैं। यह विचार करि के दोऊ वैष्णव देह कृत्य करि पाछे श्रीयमुनाजी में स्नान करि के पाछे जप पाठ करि के हपिकेस के घर आए । तव हृपिकंस देखि के बोहोत प्रसन्न भए। सन्मान करि के वेठाए। पाछे उन वेष्णव सों पूछे, जो-तुम काल्हि मेरे घर तें भूखे गए सो मेरो कहा अपराध है ? अव आजु कछ कृपा करके अंगीकार करिए। तो मेरो मन प्रसन्न होइ । तब वेष्णव ने हृपिकेस सों कहे, जो- हम काल्हि तुम्हारो कहो नहीं मान्यो तासों हमारो खरच कौ खडिया रात्रि को जात रह्यो । तातें अब आज तें जैसे तुम कहोगे तैसें हम करेंगे। तब हृषिकेस ने पूछी, श्रीठाकुरजी पाछे यहां प्रसाद लेहुगे के न्यारी र- सोइ करोगे? तव वैष्णव ने कही, जो-हमारे मनमें तोन्यारी रसोई करिव की है। परंतु अव आज तुम प्रसन्न होइ कै क- होगे तैसेंई हम करेंगे। तव हपिकेस सीधो सामान सव ल्याये। कोरे वासन में जल भरि ल्याए । तव वैष्णव न्हाय के रसोई किये । पाठे श्रीठाकुरजी कों भोगधरि कै पाठे महाप्रसाद लियो। पाठे रात्रि कों वे वैष्णव हृपिकेस के घर ही में रहे । भगवद्- वार्ता कीर्तन भयो। पाठें प्रातःकाल वे वैष्णव चलन लागे। तव हृषिकेस ने कही, जो - आज तौ औरहू रसोई करि कै जाउ । तव वैष्णव, सीधो ले रसोई करी। पाछे श्रीठाकुरजी कों भोग धरि कै पाळे महाप्रसाद लियो। तब हृषिकेस अपने घर में तें कछ वासन गहने धरि कै रुपैया दस १०) वैष्णव को दिये। और विनती किये, जो - तुम बड़ी कृपा किये । फेरि बेगि आवोगे.। तुम्हारी खरची गई सो हम कों बोहोत दुःख भयो ।