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पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२९२

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एक पटेल, जानें दरांति वेचि के टका भेट धरयो २८३ तव वैष्णवन कही, जो - धन्य तुम हो जो ऐसि भांति अपनो धर्म तुम राखत हो। या प्रकार विदा होइ के वैष्णव दृषिकेस की वड़ाई करत गए। भावप्रकाश-या वार्ता में यह जनाए, जो- घर आए वैष्णव कोंजा भांति वनि आवें ता भांति समाधान करनो। उन को प्रसन्न करने । सो वे हृपिकेस श्रीगुसांईजी के ऐसें कृपापात्र भगवदीय हते । सो उन की वार्ता को पार नाहीं, सो कहां ताई कहिए । वार्ता ॥ १३७॥ अब श्रीगुसांईजी के सेषक एक पटेल, जाने दरांति बेचि के टका भेट धरयो, तिनकी वार्ता की भाव कहत है। भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं। लीला में इनका नाम 'ब्रह्म-विद्या' है । ये 'सुमन्दिरा' ते प्रगटी हैं, तातें उन के भावरूप हैं। ये गुजरात में एक पटेल के जन्म्यो । सो बरस पीस को भयो तब वाके माता पिता मरे । पा वह पटेल घास-लकरी ल्याई अपनो निर्वाह करन लाग्यो । ऐसे करत कछुक दिन में श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पधारे। श्रीरनछोरजी के दर्शनार्थ । सो मारग में वाको गाम आयो । मो तहां डेरा किए । तत्र वा पटेल को श्रोगु- सांईजी के दरसन भए । तब वह पटेल मन में कयो, जो - हों इन को सेवक होंठ तो आछौ । पाछे वह पटेल श्रीगुसांईनी सो विनती कियो, जो - महाराज ! मोकों कृपा करि अपनो सेवक कीजिए। तब श्रीगुसांईजी कृपा करि वाको नाम निवेदन कराय सेवक किये । पाठे श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पधारे। मो श्रीरन- छोड़जी के दरसन करि, ता पाछे आप श्रीगोकुल पधारे । या प्रसग-१ पाछे एक गुजरात को संग श्रीगोकुल चल्यो । तव वाने विचारयो, जो-मैंहूँ श्रीगोकुल जाउं। सो वा पटेल अपनो घास लकरी वेचि के निर्वाह करतो। सो वा दिन मार्ग में घास खोदत हतो। सो उन पटेल ने पूछी. जो-यह संग कहां जात है ? तव उन वैष्णवन कही, जो हम श्रीगोकुल जात हैं। तब उन पटेल