२९६ टोमी घावन वैष्णवन की वार्ता कसर न परे । तो तुम को यह माग्ग म्फुरेगो । पाछे देवजी उहां कछुक दिन रहि श्रीगुसांईजी के श्रीमुग्य की कथा सुने । ता पाठे श्रीगुसांईजी मों विदा है पोरबदर अपने घर आए। याता प्रमग-१ सो वे देवजीभाई नित्य भगवद मंडली में वार्ता सुनिवे कों जाते । सो नित्य नेम सों वर्षा में ठंड में सदेव जाते। सो एक दिना ज्वर आयो। तोऊ भगवद्वार्ता मंडली में गए। पाछे ऐसो ज्वर आयो सो पांच सात लंघन भए । तोऊ गए। पाठे वाहात असक्त भए । सो वा दिन जानो न बन्यो । तव सब वैष्णवन ने सुधि करी, जो - आज देवजी भाई आय न सके । तब वैष्णव-मंडली में एक मुखिया हतो। सो उनने कही, जो - आज सब वैष्णव मिलि के देवजी भाई के घर चलो। पाठे भगवद्वार्ता होई चुकी । तव सब वैष्णव मिलि के देवजी भाई के घर आए । सो उन में तें एक वैष्णव ने आगे जाँइ कै खवरि करी । जो-आज सव मंडली तुम्हारे घर आवे हैं। सो देवजी भाई को ता समै ज्वर चढयो हतो। सो इतने में वा वैष्णव ने कही। सो सुनि के हरख सों उठि के वैष्णवन के साम्हे आए। सो दंडवत् जेश्रीकृष्ण करि के आदर सों अपने घर पधराए । अपनी पास आसन दे के सन्मान सों बैठाए । पाछे हाथ जोरि के विनती कीनी, जो - आज मेरे अहोभाग्य है । जो-मेरे घर वैष्णव कृपा करि पधारे। तव उन वैष्णवन ने कही जो देवजी भाई ! तुम आज आय न सके तातें तुम को देखिये कों आए हैं । तब देवजी भाई वोले, जो - आज कौन सौ प्रसंग वांच्यो ? कौनसी वार्ता भई ? सो कृपा करि सुनावो । तव उन वैष्णवन ने सब सुनायो । तब देवजी भाई ने हाथ जोरि के
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