एक डोकरी. जानें दांतिन भोग में धरी २९७ विनती करि सव वैष्णवन सों कह्यो, जो - तुम कृपा करि के देउ तो एक वस्तू की मोकों अपेक्षा है। तब उन वैष्णवन ने कही, जो - या समय श्रीगुसांईजी की कृपा सों जो मांगो सो सव सिद्ध है। तव देवजी भाई ने यह मांग्यो, जो - मेरो नित्य नेम भगवद् मंडली में वार्ता सुनिवे को न छूटे। और देह को दंड है सो तो भुक्तेंगे । सो कृपा-करि के यही मोकों देउ । जो - भगवदमंडली न छुटे । तव सव वैष्णव प्रसन्न होंई कै यह आसीर्वाद दियो । जो श्रीगुसांईजी की कृपा तें तुमकों भगवदमंडली सदैव स्फुरेगी । पाछे सव वैष्णव उठि के श्रीकृष्ण- स्मरन कर के अपने घर को गये । पाछे श्रीगुसांईजी की कृपा तें उनके आसीर्वाद तें वाही दिन तें उन कों ज्वर उतरि गयो। भोग निवर्त भयो । पाठे नित्य भगवद् वार्ता सुनिवे कों नेम सों जान लागे। भावप्रकाश-या वार्ता में यह जताए, जो - वैष्णव मंडली को स्वरुप महा अलौकिक है । साक्षात् प्रभुन को ही स्वरूप है । तातें मंडली में अलौकिक बुद्धि सों नित्य नियम पूर्वक जानो। भगवद् वार्ता सुननो। और वाकों फल रूप करि के जाननो, तो सब कारज सिद्ध होई । सो वे देवजीभाई श्रीगुसांईजी के ऐसें कृपापात्र भगवदीय हते । तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं । सो कहां तांई कहिए। वार्ता ।।१४१॥ अब श्रीगुसाई जी की मेवामिनी पळ डोकरी, नान दांनिन भोग में धरी, तिनकी वार्ता की भाष कदत है- भावप्रकाश--ये सात्विक भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'भाव-प्राणा' है । ये भगवद् भाव में अत्यंत निपुन हैं । नातं श्रीचंद्रापलीजी की इन पर बोहोत प्रीति है । ये 'मधुएनी' ते प्रगी हैं. नाते उन के भावस्प हैं।
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