पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

एक स्त्री-पुरुष, मथुराजी के ३०१ . पधारे तव वैष्णवन श्रीगुसांईजी आप सों यह सब समाचार विस्तार सों कहे । तब श्रीगुसांईजी यह सुनि के आज्ञा किये, जो - वैष्णवन को जो कछू सेवा संबंधी कार्य करनो होइ सो भगवदीयन को सत्संग करि कै करनो। भगवदीयन तें पूछि के करनो। जो- देखा देखी करे तो उलटो अपराध माथे पड़े। तातें विचार के करनो। भावप्रकाश-या वार्ता की अभिप्राय यह है, जो - सेवा भगवदीयन को संग करि, भाव समझि के, प्रीति संयुक्त करनी। देखा देखी नहीं करनी । सो वह डोकरी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपापात्र भगवदीय हती। तातें इनकी वार्ता को पार नाही, सो कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥१४२॥ अव भोगुसांईजी के सेवक एक स्त्री-पुरुष, मयुराजी के. ताने मंडली में घन वांट, तिनकी पार्ता को भाव कहत है- भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं। लीला में इन को नाम 'गहनी' 'देहनी' हैं । ये दोऊ 'मधुएनी' ते प्रगटी हैं, तातें उन के भावरूप हैं । सो पुरुप को नाम तो 'गहिनी' है। और स्त्री को नाम 'देहिनी' । चे दोऊ मथुग में रहते । मो श्रीगुसांईजी मथुराजी में वास किये तब ये सेवक भए हैं। सो उन के माथे श्रीगु- सांईजी आपु लालजी को स्वरूप सेवा को पधराय दिये हैं। घा प्रसंग-१ सो वे स्त्रीपुरुष श्रीठाकुरजी की मेवा बोहोत स्नेह सों करते । सो श्रीठाकुरजी सानुभावता जनावते । और उनके घर वैष्णव-मंडली नित्य होती। और भगववार्ता-कीर्तन नित्य होते । सो मथुरा के वैष्णव नित्य आवत हते । सो नित्य चना- चवेना को महाप्रसाद बांटते । तामें एक सेट वेग्णव सुनिवे को आवतो। सो उहां चना ववेना को महाप्रसाद बटयो । सो मेटने