३०० दोसौ बावन वणवन की वार्ता धरी हैं । अपने दोइ धरेंगे । सो वा वैष्णव ने अपने घर राज- भोग में सामग्री के संग दोई दांतिन धरे । सो उन के यहां और हूँ वैष्णव आवते । सो उनने हु यही जानी, जो-दांतिन धरन की रीति होगी। तातें उन ने चारि धरी। उनके चारि देखि के चोथे वैष्णव ने आठ धरी । पाछे उन के आठ देखि के पांच मे वैष्णव ने एक जूड़ी धरी । सो उन के यहां एक भगवदीय वेष्णव आए । सो उन ने देखी । सो इन तें पूछी, जो - तुमने यह दांतिन धरी ताको कारन कहा ? तब उन ने कही, जो- फलाने वैष्णव के यहां देखि कै मैनें धरी । तव उन वैष्णवतें पूछी, जो- तुमने आठ दांतिन क्यों राखे ? तब उन कही, जो - फलाने वैष्णव के चारि दांतिनि देखि के मेने आठ धरे । तव उन वैष्णव ने जाँइ के पूछी, जो- तुमने चारि दांतिन क्यों धरी ? तव उन कही, जो - फलाने के दोइ देखी तासों मैनें चारिधरे। तव उन वैष्णव तें जाँइ कै पूछी, जो-तुमने दोइ दांतिन क्यों धरी ? तव उन कही, जो- फलानी डोकरी पुरातन है, सो उनने एक धरी तातें मेनें दोइ धरी। पाछे वह वैष्णव वा डोकरी के घर आए । तव डोकरी ने श्रीकृष्ण-स्मरन करि कै वैठाए । और पूछी, जो - आज मेरे घर कैसें आवनो भयो ? तव उन वैष्णवने कही, जो - तुमने सामग्री में दांतिन क्यों धरी ? तव वा डोकरी ने कही, जो - हों तो श्रीगुसांईजी के दरसन कों जात हुती, और सामग्री ताती हुती। सो घर में चमचा न हुतो । तातें चमचा के बदले में मैनें दांतिन धरी । जो - श्रीठाकुरजी के हाथ न दाझे । याके लिये दांतिन धरी। तब वह वैष्णव सुनि के प्रसन्न भए। ता पाछे श्रीगुसांईजी जव राजनगर में n
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