पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३३५

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३३४ टोमी वाचन वणन की वार्ता सो मैं करोंगी। तब वह तुरक प्रमन्न भयो और हाथ छोरि दीनो । इतने ही भरि जोर तमाचा मारि के थपेड की बाके मुख पर दे के और घर में भाजि गई। और घर के किंवाड़ मारिलीन । नव वा तुरक को घनो दुःख लाग्यो । कयो. जो- देखो, स्त्री जनन मोकों थपेड़ मारी। तो धिक मेरो जीयवो। ता पाठे विचारी,जो- अब तो इहां कछ अर्थ नाहीं। ता पाळं वह तुरक घोड़ा की गड़ दे कै बाहिर निकरयो। ता पछि घोड़ा को जल प्याय के अपने घर गयो। ता पाठे विचारयो, जा- अब तो मेरो नाम मही तव जो वा स्त्री को दासी करों। ऐसें विचारि करि के गज- द्वार की चाकरी छोरी । राज में कया, जो-हों अब मेरे देस जाउंगो । ता पाछे अपनी चाकरी को द्रव्य हो मोले के अपने घर आयो । ता पछि वा स्त्री के घर के आसपास नित्य फिरे। सो एक डोकरी वाके घर नित्य जाति हती । सो वह डोकरी वाकों न्हवावें, चोटी करे। ऐसी टहल सब करे । सो वा डोकरी को नित्य आवति जाति देखि के वह तुरक वा डोकरी के घर गयो । और वासों मैया कहि के वोल्यो । ता पाळे वा डोकरी पास जल माँग्यो, जो-मैया! मोको थोरो जल पिवाय देउगी ? तव वाने जल पिवाय दियो । सो वाने एक रुपैया कादि के वा डोकरी के हाथ में दीनो । तव डोकरी घनी प्रसन्न भई । ता पाठे वहां वेठ्यो । तव डोकरी ने आदर करन्यो। आसन दे के बैठारयो । ता पाछे वाने कह्यो, जो-मोकों भूख लागी है । तव वा डोकरी ने रसोई करि कै परोस्यो । तव दोइ रुपैया और दीने। पाछे वा डोकरी के घर नित्य आइ के बैठे । वातें करे, वाकों पूछे पाछे । खान-पान करे। ता पाछे एक रुपैया वाकों नित्य देवे।