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पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३३९

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३३८ दोगो यावन वगन की पार्ता तातें तुम वाकों या तुरक के माथ करि देऊ । याही में तुम्हागे भलो है । तव वा साहुकार ने कह्यो, जो - हों घर में जॉर्ड के पूछों । पाठे कहंगो। मोकों या बात की टीक नाहीं। तब हाकिम ने कह्यो, जो - अब कहा ठीक करोगे ? वह तो गज- द्वार में आई के इह लिख्यो करवाई के गई है। और अब स्री- की जाति को इतवार नाहीं । तातें हम अब कैमें लोग्गे ? सर्वथा याकों दिवायेंगे । पाठे तुम राजी होऊ सो करो । सो कहि के हाकिम ने अपने चार मनुप्यन मों को. जो-वा साहूकार के साथ तुम चार जनें जाँड के वाके बेटाकी बह जो- तुम्हारे कहे सृधी आवे तो भली और नाहीं तो तुम याके घर भीतर धसि के वाकी चोटी पकरि के इहां ल्याउ । पाछे उन मनुष्यन के साथ साहकार ने जाँई के घर में यह बात सवन मों कही । तव वह स्त्री तो कहे, जो - हों तो घर के बाहिर हृ नाहीं गई । सो तुम घर की स्त्रीन सों घर के लोगन सों पूछो। और हों तो कछ. या वात में जानति नाहीं । और घर के ह. सव स्त्री-लोगन ने कह्यो, जो-ऐतो कहूं घर के बाहिर जात नाहीं। हमारे पास आठों पहर वैठि रहति है । ऐसे कही । परि व राज के मनुष्य माने नाहीं। और कह्यो, जो- हम याकों तुम्हारे पीछवारे तें बुलाय के ले गए है । और याने सव लिख्यो कर- वायो है । तातें हम नो याकों लिए विनु नाहीं जाँहि । हमारे धनी की आज्ञा है । ऐसें कहि के वाके घर में धसि के वा स्त्री की चोटी पकरि कै घीसी । तव वह स्त्री रोवे । घनो विलाप करें। कोऊ सुने नाहीं। वाकों तो राजद्वार ले जान लगे। तव वाने अपने ससुर सों कह्यो, जो - भले ! तुम मेरे साथ राज-