एक साहुकार के बेटा की वह, सूरत की ३३७ सदान सों कह्यो, जो-तुम याकौ नाम सव कुटुंव को नाम, और याके सरीर के चिन्ह सब लिखि लेहु । सो वा तुरक ने उन नवींसदान सों कह्यो, जो-तुम मोकों लिखो याको करि देहु । ता पाछे उन सव वाकौ नाम, कुटुंव को, सात पुरुखा पिता को और सात पुरखा सुसरार के नाम, और सवन के नाम लिखे। और वाके मुख के वचन सुनि कै सव चिन्ह लिखे। पाछे सव राजद्वार के लोग और भले मानस के लोग सवन की गवाई करवाई। और राज की मोहोर छाप करवाई। ता पाछे लिख्यो करि कै वा तुरक कों हाथ में दीनो । विन कों विदाय कीनो। तव यह अपने डेरा आय कै वेस्या की छोरीकों वाके गाम पहों- चाय आयो । सो वाकों द्रव्य वदयो हतो सो वाकों दीनो। ता पाछे दिन चारि-पांच वीते तव राजद्वार जाँइ कै फिरि के पुकारयो, जो - साहिव ! वह स्त्री अव फिरि वा साहुकार के घर में गई । मोसों कछु वात करत में बदल गई । सो अव कहत है, जो - तेरे संग सर्वथा न आउंगी। मोसों मिलि खायो, मोसों जल पियो और विटल के पाछे वाके घर में गई। मेरो द्रव्य खायो और राजद्वार में इतनो द्रव्य भरयो। तातें तुम हमारो न्याव करो । नाँतरु हों मरोंगो। तुम्हारे माथे जीव देउंगो । तव हाकिमने मनुष्य पठवाई के वा साहुकार को वुलायो। तव वासों हाकिम ने एकांत में ले जाँइ कै सव वात- समाचार कहे । और वह लिख्या वतायो। और कह्यो, जो- तुम को इतनी घर की सुधि नाहीं ? ऐसी कहा है ? भले, भई सो भई । परि तुम भली जानो तो वा स्त्री को घर में राखो मति। वह स्त्री विटल गई है। वाने यहां आई कै सव कह्यो है। ४३
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