पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३४२

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३४१ एक साहुकार के वेटा की बहु, सूरत की दैवी जीव है। ता पाळं ओर लोग उहां ठाढे हते । तिन सों श्रीगुसांईजी ने पूछ्यो, जो-यह स्त्री कौन है ? क्यों रोवत है ? और याके साथ में म्लेच्छ है सो कौन है ? तव मनुष्यन ने सव समाचार कहे। सो इतने ही पृथ्वीपति ने राजा (टोडरमल) सों कह्यो, जो - देखो । हम याकों स्त्री दीनी । परि कछु संदेह रह्यो है। काहेतें, वह अपने सरीर को घनो कल्पांत करत है। माथो भाटा सों फोरत है और रोवत है । तातें कछु कारन है । सो ऐसो कह्यो, सो श्रीगुसांईजी ने सुन्यो। तव श्रीगुसांईजी ने पृथ्वीपति के सन्मुख देख्यो । तव वाने श्रीगुसांईजी के सन्मुख देख्यो । तव श्रीगुसांईजी ने पृथ्वीपति सों कह्यो, जो-तुम ऐसो न्याव कहा कियो ? वह तुरक तो झूठी है। और स्त्री साँची है । वह तो प्रान त्याग करेगी। परि वाकों परस नाहों करेगी। ऐसी पतिव्रता है । सो तुम्हारे सिर देह त्याग करेगी। तातें तुम इन दोऊन कों मनुष्य पठवाइ कै पाठें बुलाय मँगावो। याको न्याय हम आय कै करेंगे। तव पृथ्वीपति तो प्रसन्न भयो । और अपने चाकर चारि चोपदार पठवाए । और कह्यो, जो- वे दोऊ स्त्री और तुरक कों पाउँ फेरि ल्याओ। तव वह चोपदार तुरत ही दोरे। सो दोउन कों पाऊँ फेरि ल्याए। सो दोउन कों न्यारे न्यारे राखे । और ऊपर चोकी राखी। ता पाछे पृथ्वी- पति ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो आप पाँव धारिये। ता पाछे श्रीगुसांईजी संध्यावंदन करि कै पोहोंचि के ता पाठे पाँव धारे। जहां पृथ्वीपति हतो तहां पधारे । सो पृथ्वीपति उठि कै श्रीगुसांईजी के सन्मुख हाथ जोरि कै ठगढ़ो रह्यो । तव श्री-