पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३५२

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उद्धव वाडी, गुजगत के. ३५१ उद्धव वाटी संग हुते । सौ श्रीरनछोरजी के 'दरसन करि के वोहोत प्रसन्न भए । सो केतेक दिन श्रीगुसांईजी श्रीरनछोरजी के दरसन किये । ता पाळे श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल पधारे । तब उद्धव त्रवाडी हू श्रीगोकुल आये । सो श्रीगुसांईजी तो स्नान करि कै श्रीनवनीतप्रियजी के मंदिर में पधारे । सो राजभोग पर्यंत की सेवा सों पहोंचि के अपनी बैठक में पधारे । तव उद्धव त्रवाडी श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन करि कै श्रीगुसांईजी के पास आये । तव श्रीगुसांईजी ने उद्धव वाडी सों पूछी, जो - त्रवाडी! तुमने श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन किये ? तव उद्धव त्रवाडी ने कही, जो - महाराज ! आपकी कृपा तें दरसन किये है। परि श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन करवाओतो वोहोत आछौ है । पाछे श्रीगुसांईजी भोजन कों पधारे । और वाडी कों महाप्रसाद की पातरि धरवाई। ता पाछे तत्काल श्रीगुसां- ईजी उद्धव वाडी कों संग ले श्रीगोवर्द्धन आए । सो स्नान करि कै श्रीगुसांईजी श्रीगोवर्द्धननाथजी के मंदिर में पधारे । सो सेन भोग के दरसन किये। तव उद्धव त्रवाडी ने ह दरसन किये । सो दरसन करि कै दंडवत् कीनी। तव त्रवाडी. देह को अनुसंधान भूलि गए । तब श्रीगुसांईजी ने श्रीगोवर्द्धनाथजी को चरनामृत दै कै सावधान किये। ता पाछे श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में पधारे । तव उद्धव त्रवाडीह बैठक में आये। सो आय कै दंडवत् कीनी । तव श्रीगुसांईजी श्रीसुबोधिनी की. टिप्पनी की कथा कह । सो सुनि के उद्धव वाडी बोहोत प्रसन्न भए । ता पाछे श्रीगुसांईजी आप पोढे । तव त्रवाडीह सोय रहे। पाछे प्रातःकाल त्रवाडीजी ने श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी.