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पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३५३

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३५२ टोगो याचन वैष्णन की यार्ना जो - महाराज ! आप की आज्ञा होई तो ब्रजपरिक्रमा कगिा। तव श्रीगुसांईजी ने आज्ञा दीनी, जा- परिक्रमा अवस्य करनी। पाछे उद्धव त्रबाडी के संग एक वैष्णव पठायो । मा या वैष्णव सों कह्यो, जो-इन उद्धव त्रवाडी को ब्रजयात्रा करवाय ल्याआ। तव वह वेष्णव और त्रवाडी प्रथम तो विदा होड के चले । सो श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा कीनी । पाउँ कतेक दिन में चोरासी कोस की परिक्रमा करि के फेरि श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये। ता पाछे उद्धव त्रवाडी ने श्रीगुसांईजी के दरसन करि के विनती कीनी. जो - महाराज! आप की कृपा ते सर्व मनोरथ सिद्ध भये हैं । तब श्रीगुसांईजी ने श्रीमुख तें कन्यो, जो- श्रीगोवर्द्धननाथजी तो भक्त के मनोरथ पूरन करत हैं। यह सुनि के त्रवाडी बोहोत प्रसन्न भए । पाठे उद्धव त्रवाडी श्रीगुसांईजी सों विदा व्हे अपने देस आये । भावप्रकाग~या वार्ता की अभिप्राय यह है, जो - श्रीआचार्यजी, श्री- गुसांईजी के स्वरूप में दृढ निष्ठा होई तब मगगे पुष्टिमार्ग म्फरायमान होई । और अन्य संबंध ह न होई । सो वे उद्धव त्रवाडी श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भग- वदीय हते । तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥ १५० ॥ . अघ थीगुमाईजी की सेवाकिनो, सीताबाई और उनकी माता अचलवाई नागर ब्राहमी, घडनगर में रहती, तिनकी धार्ता को भाव कहत है- मावप्रकाश-ये सीताबाई सात्विक भक्त हैं। लीला में इन को नाम 'गोवर्द्धनी' है । और गोवर्द्धनी की एक सहचरी है । वाको नाम 'शिला' है । सो यहां माता भई । ये 'ईश्वरी' तें प्रगटी हैं, तातें उन के भावरूप हैं। ये बड़नगर में एक द्रव्यपात्र नागर ब्राह्मन के घर जन्मी । सो बरस. आठ