३८२ दोगो बारन वैष्णवन की वार्ता . सो भोजन करि आप पधारे पाछे दोऊन का जूटनि की पातरि घरी । सो इनने महाप्रसाद लियो । पाठें जगह बताई नहीं दोऊ सोय रहे । सो सवेरे उठि के श्रीगुसांईजी के दरमन किये। तव वृंदावनदास छवीलदास ने श्रीगुसांईजी मों विनती कीनी, जो-महाराज ! कृपा करि के निवेदन कराइए । तव श्रीगुसांई- जीने कही, जो व्रत करो। तब दोऊन विनती कीनी. जो- महाराज ! जो - आजा । परि कृपानाथ ! बीच में एक दिन जायगा । तातें आज ही कृपा कगे तो आछो । तब इन की विरह-ताप देखि के आप तो कृपाल है सो आज्ञा दिये. जो - तुम मंगला के दरसन करि के यहां बेटे रहियो । और खवास ते आज्ञा करी, जो - सिंगार के दरमन ममय दोऊन कों न्हवाय के अपरस मे, पाठे ग्ववरि करियो। पाठे मंगला के दरसन भए । ता पाठे श्रीगुसांईजी आप तो श्री- नवनीतप्रियजी के सिंगार करन लागे । पाछे खवास ने इन कों अपरस में न्हवाय के बैठाए । तव सिंगार करि के दोऊन कों श्रीगुसांईजी आप कृपा करि निवेदन करवायो । पाछे राजभोग धरि आप वाहिर पधारे । समय भये भोग सराय राजभोग आर्ति किये। ता पाछे अनोसर करि के श्रीगुसांईजी आप बैठक में पधारे । तव तहां वृंदावनदास छवीलदास ने भेट करी । पाठे आप भोजन कों पधारे । सो भोजन करि के वृंदावनदास छबीलदास कों जूंठनि की पातरि धरी । सो दोऊ जनेंन ने महाप्रसाद लियो । ता पाछे श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो - महाराज ! अव कहा आज्ञा है ? तब श्रीगुसांईजी ने आज्ञा करी, जो - सेवा करो । तव वृंदावनदास छबीलदास ने
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