एक वैष्णव, जो-श्रीगिरिराज उपर चढयो ३९३ दोऊ परीक्षा के मिप तासी भगवदीयन के धर्म प्रगट किये हैं। जो - तासी, भगवदीयन के धर्म ऐसे होत हैं। तातें आर्गे के जीवन को अहकार न होई । और जो - कोऊ साधारन वैष्णव होइ (कै) तासी भगवदीय की परीक्षा करे तो वाकों बाधक होई । परि ये तो दोऊ असाधारन वैष्णव हैं. तातें आगें के जीवन को सिक्षार्थ या प्रकार चरित्र किये । यह भाव जाननो । सो वे दोऊ ताहसी और भगवदीय श्रीगुसांइजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हते । तातें इनकी वार्ता को पार नाही, सो कहां ताई कहिए ? वार्ता ॥१६॥ । अथ श्रीगुमाईजी को सेवक एक वैष्णव, जाकी श्रीगिरिगज ऊपर चढते देखि श्रीगुमाईजीने अपनो मस्तक हलायो, तिनको वार्ता को भाव कहत हैं भावप्रकाश--ये तामस भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'मुक्ता' है। ये मधुरा ते प्रगटी हैं. तातें उनके भावरूप हैं । ये गुजरात में एक बनिया के जन्म्यो । सो यह बरस दस को भयो तर इनके माता-पिता मरे । पाठे गाम में वैरागी आए । सो याकों वैरागीन को संग भयो । सो कछुक दिन में वे वैरागी वा गाम ते कासी को चले । सो येह इन के संग चल्यो । मो कासी आयो । सो वह वैरागीन के संग कासी में रह्यो। ता पा, वह घरस सत्ताईम को भयो । तव याके मन में आई, जो - हो कबहू मथुरा- वृन्दावन देख्यो नाही । ताने ब्रज-यात्रा करो तो भलो है। सो ये कासी त चल्यो सो मथुरा आयो। तहां विश्रांत स्नान कियो। पाछे श्रीगोकुल को चल्यो । सो श्रीठकुरानी घाट पे आयो । सो ता समै श्रीगुसांइजी आप ठकुरानी घाट पै संध्यावंदन करत है । सो इन दरसन पायो । सो दरमन करत ही याके मन में आई. जो - इनके सेवक होइए तो आछौ है । पाछे ये विनती कियो, जो- महाराज ! कृपा करि मोको सनि लीजिए । तब श्रीगुसांईजी वासों कहे, जो-श्री- यमुनाजी में न्हाय लेऊ । तब यह श्रीयमुनाजी में स्नान कियो । पार्छ श्रीगुसांई- जी वाकों कृपा करि कै नाम-निवेदन कराए। ता पाछे यह वैष्णव सहक दिन श्रीगोकुल में रहि कै श्रीगुसांईजी के दग्सन किये । ता पाठे यह श्रीगुसांईजी सों विदा व्है श्रीगोवर्द्धन आयो । सो तहां श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये । पाठे गोवर्द्धन पर्वत की सोभा देखे । मो वाको मन उहां लगि गयो । मो उहाई रह्यो। और कहूं गयो नाहीं । ५०
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