पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३९३

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३९४ टोमी वारन गायन की वार्ता ग्राम प्रमग-1 सो एक सम श्रीगुसांईजी आप श्रीजीद्वार पधारे है। नहीं सब वैष्णव साथ हुते । सो तहां देखे तो श्रीगुसांईजी आप या वैष्णव की पर्वत के ऊपर चढत देख्यो । मो उतार पर दोऊ गेल, पर गोवर देख्यो । तब उह वैष्णव गह छोड़ि के गोवर्द्धन को पग लगाय उपर चढ़यो। तब श्रीगुसांईजी देखि के मिर हलायो। तव और वैष्णव पास बैठे हुते तिन पृछी. जा-महाराजाधिगज' यह सिर हलायो सो कारन कहा है ? मो को चहिए। तब श्री- गुसांईजी आप श्रीमुख सों कहे, जो-श्रीगोवर्द्धन मनिमय जटित साक्षात् भगवद्स्वरूप है। ता पर मृढ-मूरग्ब है मा या भांति गों श्रीगिरिराज के ऊपर चढत हैं। और श्रीगोवर्द्धन पर्वत के ऊपर दोड़त हैं। सो तहां 'ब्रह्मवैवर्त पुरान की एक इतिहास है । सो श्रीगुसांईजी आप कहे जा- एक वार श्रीकृष्णचंद्रजी और नारदजी आप बैठे हते। तव श्रीकृष्णचंद्रजी ने नारद सों कह्यो, हम पानी-प्यासे हैं। तब श्रीनारदजी पानी को चले । सो आगे जाँइ के देखें तो एक बड़ी सरोवर है। ताके पास दोई लरिका बैठे हैं। सो तपस्या करत हैं.। और पास बड़ो पर्वत हाड़न को ढेर परयो है । जो - वह देखि कै नारदजी फिर आए । तव श्रीठाकुरजी पूछे, जो जल ल्याए नाही ? तव इन सव वृत्तांत कह्यो । सो सुनि के आप मुसिकाए । तव श्रीनारदजी ने पूछयो, जो - महाराजा- धिराज ! याकौ कारन कौन भांति सों है ? सो आप कहिये । तव श्रीठाकुरजी आप श्रीमुख सों कह्यो, जो - ये दोऊ योगेस्वर हैं, सो गोवर्द्धन पर्वत के दरसन के लिये तपस्या करत हैं । सो