पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३९५

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३९६ टोमो यान बंगावन की वार्ता जाई उनके सेवक हो। ना वह वामन बाण मोटे, जी तुम गंग चलो तो आछो । तब यह बैंगव या बालन के मग श्रीगोल आयो । पाठे श्रीगुसांईजी के पाम ऑर्ड विनती कीनी, जो महागज या वामन को मेयर कीजिए । नव श्रीगुसांईजी कृपा करि बाको नाम-निवेदन कगार मेक किये। पाछे श्रीगुमाईजी वाकी ओर कृपा-दृष्टि भरि चिने । पातां प्रमग-.. सो वा विरक्त ब्राह्मन वैष्णव को भगवदलीला की जान भयो। मो गोप्य वार्ता जानवे लाग्यो । नव वा विरक्त वामन वैष्णव ने श्रीगुसांईजी मों विनती कीनी, जो - महाराज ! अब मोकों ऐमो उपदेस देउ सो दुःवरुपी मंमार ने छटों. और भगव- ल्लीला में प्राप्ति होई। तब श्रीगुमाईजी ने श्रीमुख ते आज्ञा दीनी, जो ये बात तो वोहोत कठिन है । जो - श्रीठाकुरजी कृपा करें तब यह दसा की प्राप्ति होइ । तव वा विरक्त वैष्णव ने सव वैष्णव के उद्धार निमित्त पृछी. जो - महाराज ! आप की कृपातें कितनीक बात है ? गज के अधगमृत के वचन मुनि कै जीव कृतारथ होंइ जाँइ है । सो ऐसे वचन वा विरक्त ब्राह्मन वैष्णव के सुनि कै श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो- पहिले तो वैष्णव ऐसें हते, जो - अवकास होइ तव श्रीयमुनाजी के तीर के विपे वैठि के कीर्तन करते । और अव के वेष्णव तो ऐसे है, जो- कीर्तन-वार्ता सुनत नाहीं और लौकिक-वार्ता बोहोत सुनत सो ताके ऊपर कह्यो, सो श्लोक-- ननु ते देव निहताः ये चाच्युत-कथासुधाम् । हित्वा श्रयन्त्य सद्गाथांपुरीष मिव विड्भुजः । और कह्यो, जो-'सर्वधर्मान्परित्यज्य' मा कैसे होंई ? सो ऐसें कहे, जो - हों अकिंचन हों। और मन में विचार करे.