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पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/४०८

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एक अन्यमारगी, जानें स्मसान में वैठिकै खायो ४०९ विनती करत है, जो - मोकों कृपा करि कै सरनि लीजे । तव श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो-स्तान करि आउ । तोकों हम नाम दे सरनि लेइंगे। फेरि तेरे मन में आवे सो करियो। हम तोकों कबहू छोरेंगे नाहीं। भावप्रकाश--यह कहि यह जताए, जो - पुष्टिमार्ग में जीव सरनि आवत हैं, ताको प्रभु आप सर्वथा छोरत नाहीं। काहेते, यह प्रमेयमार्ग है । ता जीव की कृति देखत नाहीं । सो श्रीगुसांईजी आप साक्षात् पूरन पुरुपोचम है । तामों या प्रकार कहे। तव उह स्नान करि कै आयो। और विनती करी, जो- महाराजाधिराज ! मोकों नाम दीजिए । तव आपु वाको नाम दियो। पाठे श्रीगुसांईजी आप स्नान करि के श्रीनाथजी के मंदिर में पधारे। ता पाछे राजभोग के दरसन खुले। तव सव वैष्णव ने श्री- नाथजी के दरसन किये। पाळे याहू ने दरसन किये। पाठे श्री- गुसांईजी श्रीनाथजी की सेवा तें पहोंच कै श्रीगिरिराज ते नीचे अपनी वैठक में पधारे । सो गादी तकियान के ऊपर विराजे। तब सब वैष्णव श्रीगुसांईजी के दरसन करि के अपने घर को गए । तव वा वैष्णव ने दरसन करि दंडवत् करि भेंट कीनी । तव श्रीगुसांईजी आज्ञा किए, जो-तू आज महाप्रसाद यहांही लीजियो। पाठे श्रीगुसांईजी भोजन को पधारे । सो श्रीगुसांईजी भोजन करि कै वीड़ा आरोगि कै श्रीगुसांईजी आपुने श्रीहस्त सों जूंठनि की पातरि धरी। पाछे वा वैष्णव ने महाप्रसाद लियो। ता पाउँ आज्ञा माँगि अपने घर श्रीगोकुल को गयो । सो उन घर आइ विचार कियो, जो - अव परीक्षा करिए । पाठें वह स्मसान में जाँइ रह्यो। सो उहां मुरदा की आंत्र में दारि वाटी