एक राजा, जानें स्मसान में जंठनि खाई ४१५ सुबोधिनिजी की कथा कहत हते । और सब वैष्णव सुनत हते । तव वा राजा ने आय के हाथ जोरि कै श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो - महाराज ! मैं श्रीभागवत में सुन्यो हतो, जो - श्रीठाकुरजी ने अवतार लीनो । सो मैनें आज देख्यो है । और आप साक्षात् श्रीठाकुरजी को अवतार हो । सो प्रभु ! मेरे ऊपर कृपा कीजिए। नाम निवेदन कराईए । तव श्रीगु- सांईजी आज्ञा किये, जो- हमारो धर्म वोहोत कठिन हैं। और तुम अभक्षाभक्ष करत हो । सो तातें नाम कैसे दियो जाँई ? तव राजाने विनती करी, जो - महाराज ! अव ते अभक्षाभक्ष न करूंगो। अव आपु आज्ञा करोगे सोइ मैं करोंगो। अब आप के पास रहूंगो । देस को न जाउंगो। पाठें श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो-स्नान करि आऊ। तव वा राजा स्नान करि. आइ के विनती कीनी, जो-महाराज ! मेरे ऊपर कृपा करिये। तव श्रीगुसांईजी आपु ने वा राजा को वैठारि कै नाम सुनायो। पाठे श्रीगुसांईजी आपु आज्ञा किये, जो - तुम काल्हि व्रत करियो। परसों ब्रह्मसंबंध करवावेंगे । ता पाजें व्रत करि के स्नान करि के अपरस वस्त्र पहरि के वह राजा श्रीगुसांईजी आगें आय ठादौ भयो । कयो, जो - महाराज ! मेरे ऊपर कृपा करि के ब्रह्मसंबंध करवाईये । पाठें श्रीगुसांईजी श्रीनव- नीतप्रियजी को राजभोग सरायो । तब राजा को श्रीनवनीत- प्रियजो के सन्निधान ब्रह्मसंबंध करवायो। पाठे राजाने दरसन किये । ता पाछे श्रीगुसांईजी राजभोग-आर्ति करि अनोसर करि अपनी बैठक में पधारे । सो गादी-तकियान के ऊपर विराजे । तव या राजाने आय के दंडवत् कीनी. पाछे भेंट
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