रूपा पोरिया ४१७ ऊपर वोहोत ममत्व राखतो। सो जीवन पर्यंत या भांति कियो। सो उह राजा भलो भगवदीय भयो । भावप्रकाश--तातें भगवदीय को संग ऐसो पदार्थ हैं। जो वैष्णव की जुठनि ते वा राजा को कोढ निवृत्त भयो । और वैष्णव ह भयो। तातें भगवदीय को संग करनो। सो उह राजा श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय भयो । तातें इन की वार्ता कहां तांई कहिए। वार्ता ॥१६५॥ अब श्रीगुमाईजी को सेवक रूपा पोरिया, सो श्रीगोबर्द्धननाथजी की मिघ- पोरि पे रहतो, मिनकी वार्ता कौ भाव कहत है भावप्रकाश-ये राजस भक्त हैं । लीला में इनको नाम 'रासो' गोप है । ये श्रीनंदरायजी के घर की रखवाली करत हैं। ये 'रसात्मिका' ते प्रगट्यो हैं. ताने उनके भावरूप हैं। ये गोपालपुर में एक सनाढ्य ब्राह्मन के जन्म्यो । सो बरस बीस को भयो। तब इनके माता-पिता मरे । पाठे घर में कोऊ रह्यो नाहीं । तब यह श्रीगुसां- ईनी पास आइ विनती कियो, जो- महाराज ! मोकों सेवक कीजिए । और कृपा करि कै कछू टहल दीजिए । तत्र श्रीगुसांईजी रूपा को नाम दे सेवक कियो । पार्छ श्रीनाथजी सिंघपोरि की सेवा सोंपी । और कयो, रूपा ! तू श्री- नाथजी की सिंघपोरि की रखवारी करियो । और श्रीनाथजी की प्रसादी रसोई में तें महापसाद लीजो। वार्ता प्रमग-१ सो उह रूपा पोरिया श्रीनाथजी के मंदिर की द्वारपाल की सेवा करे । सो एक समय दुपहरि को श्रीनाथजी ने रूपा पोरिया को लात मारि कै जगायो । और श्रीमुख तें कहे, जो - मोकों भूख लगी है । तव रूपा पोरिया तुरत ही उठि कै श्रीगुसांईजी की सिज्या के पास आयो । सो श्रीगुसांईजी के चरनारविंद दावि कै जगाये । सो आप जागे । सो देखे तो श्रीगोवर्द्धननाथजी को सिंघपोरिया ठाढ़ो है । तब श्रीगुसांईजी
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