कागजाई के श्रीगोवर्द्धननाथजी को फेरि राजभोग ममग्यो।
चान गणवन की वार्ता
धरी।
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विरियाँ क्यों आयो है ?
या विनती करी, जो - महागज
- 1. जो - श्रीगोवर्द्धननाथजी आपु भाव
माजी तुरत ही उठि के श्रीगोवर्द्धननाथजी के T पाठे भोग सराय के सव मेवा ने पहात्रि के श्रीगुसांईजी आप अपनी बैठक में पधारे । मो पोदे । नव रूपा पोरिया अपनी द्वारपाल की मेवा किये। मो रूपा पोग्यिा मों श्रीगोव- दुननाथजी ऐसें सानुभाव हते । मो जो कछ चहिए मोम्पा पोरिया सों कहते । और रूपा पोरिया मों उष्णकाल में पंग्वा करावते । ऐसी कृपा श्रीनाथजी रूपा पोरिया के ऊपर करते। सो ऐसी रूपा पोरिया की कितनिक वार्ता हैं । मो में करन पाछे केतेक दिन में वा रूपा पोरिया की देह छटी । तब वैष्णव मिलि के अग्नि-संस्कार कियो । ता पाछे उह वात श्रीगुमां- ईजी सुनि के श्रीमुख त कहे, जो - भगवद ईच्छा होंड सो होइ। जो - श्रीगोवर्द्धननाथजी की ईच्छा प्रबल है । सो वे रूपा पोरिया श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो। घा प्रमग-२ पाछे एक समै श्रीगुसांईजी श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन कों पधारे हते । सो श्रीनाथजीद्वार । सो गोविंदकुंड पे स्नान करि कै । सांईजी श्रीगोव के मंदिर में पधा- रत हते। कों देखि के सन्मुख करत तव सव. मारयो