पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/४२३

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४२२ दोमो वाचन वणरन की वार्ता 'बन-रानी' हट पर्ग । कन्यो, जो - महागन ! ये बन के मुदर फल आगेगिा और मेरो मनोरथ पूरन कीजिए । एमो समय फेरि कहां मिलेगी ? गो श्रीटारम्जी नो आप भक्तवत्सल हैं। मो नाना भांति के मेवा बनगनी ल्याई गावोदीत प्रसन्नता- पूर्वक हास्य-विनोद यो आगगे । पाठे आप बनगनी की कंज में पधारे । गो बोहोत भांतिन मो बनगनी को मुग दिये । गो बात एक ममी ने देगी । मोडा, म्यामलाजी मो जाड कही। तर न्यामलाजी उहां पधारी । गो देंगे तो गनगनी श्रीठाकुरजी के साथ एकांत में बैठी हाम्य-विनोट करनि । गो म्यामलाजी नक. दुरि ओट में ठाहे रहे। मी नाही मम श्रीठाकुरजी की रष्टि उन पर पर्ग । नत्र श्री- ठाकुरजी वनरानी यो कहे, जो-हो तो जान हूं । श्रीम्यामलानी यहां पधार्ग:। तातें तू सावधान है। पाछे श्रीठाकुरजी आप पारिल द्वारका वन को पधारे। और बनरानी वस्त्र-मिगार मॅचारि उठी । तर म्यामलाजी उमां पधारी। पा, नगनी मों कहे, जो - श्रीठाकुरजी तेरे उहा के पधार है ? तर बनगनी कहे. जो - यहां तो श्रीठाकुरजी पवार हे नाहीं । तुम कहा कहन हो ! तर बनगनी गों स्यामलाजी कहे, जो - झूठ काहे को बोलन है । मैंने अपनी आमिन न दंग है। तब बनरानी कहे, जो - वे तो गांड ददिर को बन में आये हने गो गॉर्ड इंदि के ताही समै पधारे । तब म्यामलानी कहे, जो - तू मो आगं असत्य बोलनि तातें भूतल पर गिरि । हीनयोनि को प्राप्त होऊ । सो ये गोवर्द्धन में एक चूहडा के जन्म्यो । मो ये बग्म दम को भयो । तब एक समै ये गोवर्द्धन की गेल में जात हुतो । सो उहां एक मर्पने बाकी काट्यो। सो वह गेलही में गिरयो । मो नाही समै श्रीगुसांईजी आप घोड़ा पै विगजे श्रीगोकुल तें पधार रहे है । मो श्रीगुसांईजो गेल बीच में या लरिका को देसि खवास सों पूछे, जो - यह कौन है ? गेल में कैसे परयो है ? तब सबाम ने पास जाड देख्यो । पार्छ कह्यो, जो - महाराज ! काह को लरिका है । सो कोई प्रानी काटयो दीसत है, तातें ये मरयो परयो है । तब श्रीगुसांईजी आप घोड़ा तें नीचे उतरि वाके पास पधारे । पाछे वाके ऊपर वेदमंत्र पढि जल छिरके । तर वह लरिका जागृत भयो । तव श्रीगुसांईजी पूछे, जो-तृ कौन है ? तब इन कयो, जो - महाराज ! मैं चूहडा हूं। सो मोकों स्याँपने काटयो हो । सो आप कृपा करि जिवायो । अब मैं आप के सरनि आयो हूँ। तब श्रीगुसांईजी वाकों देवी- जीव जानि अष्टाक्षर मंत्र सुनाइ सेवक किये । पाछे वासों कयो, जो - तु यह मंत्र कौ नित्य जप करियो । ता पाछे श्रीगुसाईजी तो आप गोपालपुर पधारे । पाछे