४२४ टोमी चारन वणवन की वार्ता तव सवन तें पहले दरसन करवाय देंगे । ना पाउँ श्रीगुसांईजी झापटिया को बुलाय के आज्ञा दिये, जो - या चूहडा को स- वन ते पहिले दरसन करवाय दियो करो। तब वान कही, जो-महाराज ! जो - आजा । ता पाउँ मी कृपा वा चूहडा के ऊपर करते । सो नित्य श्रीठाकुरजी की कृपा ने माला के समय नित्य दरसन को श्रीगिरिराज ऊपर जातो। मो मंदिर के द्वार सन्मुख नेक दृरि. न्हाय के मुद्ध वस्त्र पहरि बैठनो। पाठं म- वन ते पहिले झापटिया याकों बुलाय के दमन करवाय देतो। सो उह श्रीनाथजी के दरमन नित्य नेम मी करतो । मो में कितनेक दिन भए । सो तब कवहक एक सम भगवद् इच्छा मों कामकाज में अटक रह्यो। ता पाउं वह आय के देख्या तो तारा मंगल भया है। और कोऊ वैष्णव तहां नाहीं है। मो उह मंदिर के पिछ्वारे आय के परयो रह्यो। सो बोहोत ही आतुर भयो । और ज्वर होंइ आयो। सो महा कष्ट भयो। तव श्रीगोवर्द्धन- नाथजी आपु सिंघासन तें उठि के चले। मो पिछली ओर एक मोखा करि के वा चूहडा को नाम ले पुकारे । सो उह सब्द सुनत मात्र ही उठि के ठाढ़ो भयो । वा दिन मोखा में तें श्री- गोवर्द्धननाथजी को दरसन भयो। ता पाछे श्रीनाथजी ने वा चूहडा कों दोई लडुवा दिए। और श्रीगोवर्द्धननाथजी ने वासों श्रीमुख सों कहे, जो - ये हमारे प्रसादी लडुवा तू खाँय ले । तव वा चूहडा ने एक लडुवा तो खायो । ता पाठें एक लडुवा चादर में बांधि के अपने घर आयो। ता पानें श्रीगोवर्द्धननाथजी को उत्थापन को समै भयो । तव संखनाद भये । ता पाळं श्री- गोवर्द्धननाथजी के मुखिया भीतरिया स्नान करि के श्रीगिरि-
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