दोसौ वावन वैष्णवन की वार्ता 'ठाकुरजी आप श्रीआचार्यजी, श्रीगुसांईजी की कानि सों साक्षात् श्रीमुख से अंगीकार करत हैं । तातें, वैष्णव को उत्तम वस्तु जा भांति बनि आवे ता भांति श्रीठाकुरजी को समर्पनी । यह सिद्धांत भयो । सो वह सेठ और वह वैष्णव ऐसें परम कृपापात्र भगवदीय हते । तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए। वार्ता ॥९॥ 1 अब श्रीगुसांईजी को सेवक एक वनिया, गुजरात में रहतो, तिनकी वार्ता को भाव कहता है- - भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं। लीला में इन को नाम 'आनंददायिनी' है। ये छविसिंधि' तें प्रगटी हैं। तातें उनके भावरूप हैं। और आनंददायिनी की एक सखी है । वाको नाम 'सुलोचना' है । इन के नेत्र बड़े सुंदर है । तातें श्री- ठाकुरजी इनकी ओर टकटकी लगाई के देखत हैं। सो आनंददायिनी तो यहां बनिया भयो । और इनकी बेटी सो 'सुलोचना' को प्रागट्य जाननो। ..सो यह बनिया • गुजरात में एक गाममें एक जैनी के जन्म्यो । सो वाको पिता द्रव्यपात्र हुतो। सो वह या वेटा कों, चोहोत,लाड़ करें ।, सो बेटा घरस, सोरह कौ भयो । तव इन कौ व्याह कियो । पार्छ वा पनिया के वेटा कों एक वैष्णव, को संग भयो । तव चाने चा वैष्णव को आचार देख्यो । तव वाकी रूचि वैष्णव धर्म 4 मई । सो वाके मन में आई, जो- हों वैष्णव होऊं तो आछौ । पार्छ या बनिया' के वेटा ने वा वैष्णव सों कह्यो, जो - तुम मोकों वैष्णव करो तो आछौं । तुम्हारो आचार-विचार मोको बोहोत, रूचत है। हमारे यहां तो कोऊ नित्य न्हात हू नाहीं । संव मलीन रहत हैं। कहत हैं, जो जादा पानी खर्च कियो न जाई । जीवजंतु मरे तो पाप होई । सो मोकों तो वह धर्म रूचत नाहीं । तातें हों तो वैष्णव होऊंगो। तातें. तुम मोकों सेवक करो । तव घा वैष्णवने कही; - जो भाई ! हम तो काह को सेवक करत नाहीं । परि तेरे वैष्णव होनो होई तो दोइ चारि दिन में यहां श्रीगुसांईजी पधारेंगे। उन की सरनि जइयो । वे साक्षात् ईश्वर हैं। सो उनके सरनि गये तें तेरो कल्यान होइगो। तब वह वनिया के बेटा ने कह्यो, जो भलो, श्रीगुसांईजी पधारे तब तुम मोकों कहियो । 'हो उनको सेवक होउंगो। मेरे मन में वैष्णव होइवे की बोहोत उत्कंठा है। तव वा वैष्णवने कह्यो, जो-'भले, मैं तोसों कहोंगो । पाछे वह तो अपने घर 7
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