तीन तंबावालो वैष्णव ब्राह्मण नौवतखाना वाजन लाग्यो । तब वह सिव के उपासक ब्राह्मन ने पूछ्यो, जो-आजु राजा के घर कहा है? जो-नौवत वाजत हैं ? तव सवन कह्यो, जो-राजा के चारि पुत्र भए हैं। तातें राजा कों वड़ो आनंद भयो है । सो नौवतखाना वाजत हैं। तव यह ब्राह्मन अपने मन में विचारि कियो, जो - मोकों तो महादेवजी पुत्रकी नाहीं कही, जो - श्रीठाकुरजी हू पुत्र की नाहीं करी हैं । सो मोकों राजा के झुठो करायो । तातें मैं अव महादेव के ऊपर मरोंगो। पाठे एक तरवार लेके महादेवजी के मंदिर में गयो । सो कह्यो, जो - मैं तुम्हारे ऊपर मरोंगो । मोकों तुम राजद्वार में झूठो करायो । ऐसें कहि कै तरवार गरे में लगाय के मरन लाग्यो । तैसेंही महादेवजी आय के हाथ पकरि लियो । कह्यो, ब्राह्मन ! अव फेरि क्यों मरत है ? तव इन कही, जो - या राजा के भाग्य में पुत्र नाहीं है । सो अव चारि पुत्र याके कहां तें भए ? तव महादेवजी सुनि के चक्रत होंइ रहे। कहे, जो - मैं फेरि श्रीठाकुरजी पास पूछि आउं। तव महादेवजी फेरि आई के श्रीठाकुरजी सों कहे. जो - महाराज! वह राजा को आप कहे हते, जो - वाके भाग्य में पुत्र नाहीं है । सो अब उहां तो राजा के चारि पुत्र भए ? ताको कारन कहा है ? तव श्री- ठाकुरजी कहे, जो - वा राजा के भाग्य में तो पुत्र नाहीं। परंतु तुम पूछो, जो - कौन प्रकार पुत्र भए ? कोऊ वैष्णव की आसीर्वाद तो नाही भयो ? तब महादेवजी ने वा ब्राह्मन सो आइ के कही. जो-तृ राजा सो पछि आउ. जो - बारि पुत्र एक संग ही कमें भए ? तब यह बामन राजा नों toy
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/५८
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