५० दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता आइ कै पूछयो, जो – तुम्हारे पुत्र कौन प्रकार सो भए ? मोसों तो महादेव ने कह्यो हतो, जो - राजा के भाग्य में पुत्र नाहीं है । और श्रीठाकुरजी हू पुत्र की नाही कीनी हती। सो अब ये पुत्र तुम्हारे केसें भए ? सो कहो। तव राजा कहे, जो-हम तो जानत नाहीं। जो-फलानो वैष्णव कहि गयो हतो। ताके वचन सत्य भए । तव उन कह्यो, जो-वाकों बुलावो । तव राजा ने वह ब्राह्मन वैष्णव कों बुलाय कै पूथ्यो, जो-वैष्णव ! तुम पुत्र कहि गए हते सो मेरे चारि पुत्र भए । सो याको कारन कहो ? तुम कैसे जाने? तव वह वैष्णव ने कही, जो-राजा! हमारे घर एक श्रीगुसांईजी कौ सेवक विरक्त हमारो गुरु-भाई हुतो। सो तीनि दिन को भूखो हतो। सो मैं उन की सेवा करी । तव उन प्रसन्न होइ कै कह्यो, जो-तुम कछ मांगो ? तव में यह मांग्यो, जो-राजा के एक पुत्र होई । तव वाने कह्यो, जो- एक कहा चारि होइगे। सो श्रीगुसांईजी के सेवक झूठ वोले नाहीं । यह सुनि के राजा चक्रित होंइ रह्यो । पाछे वह ब्राह्मन जाँइ के महादेव सों कह्यो, जो-श्रीगुसांईजी के सेवक के आसीर्वाद ते पुत्र भए हैं । तब महादेवजी जाँई के श्री- ठाकुरजी सों कहे, जो-श्रीगुसांईजी के सेवक के आसीर्वाद तें पुत्र भए हैं। तब श्रीठाकुरजी कहे, जो-वैष्णव ने मेरे ऊपर कृपा करी है । जो- वैष्णव यह कहतो, जो- राजा के घर श्रीठाकुरजी प्रगट होंइगे तो मोकों प्रगट होनो परतो। यह तो पुत्र भए ताको कहा आश्चर्य है ? तब महादेवजी आइ के वा ब्राह्मन सों कहे, जो - श्रीगुसांईजी को सेवक श्रीठाकुरजी
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