पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/६०

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तीन तूंबावालो बैष्णव ब्राह्मण कों कहतो तो श्रीठाकुरजी को प्रगट होनो परतो । यह तो पुत्र ही भए, ताको आश्चर्य कहा ? तव वा ब्राह्मन ने आइ के राजा तें कहो. जो उन वैष्णव की आज्ञा ते श्रीठाकुरजी कों अवतार लेनो परतो । यह तो तुम्हारे पुत्र ही भए. ताको आश्चर्य कहा? भावप्रकाश [~या वार्ता में यह संदेह है, जो - महादेव हु वैष्णव है। ताते वे ह देते तो राजा को पुत्र होतो। सो उन क्यों नाहीं दिये ? तहां कहत है, जो - महादेव मर्यादा भक्त हैं । तातें विधि अनुसार सब कार्य करत हैं। सो राजा के भाग्य में पुत्र नहीं है ऐसो उन जान्यो तब वे चुप रहे । पा, विष्णु के पास गए । सो विष्णु हु गुनावतार है । सो उन ह नाही कीनी । और वह विरक्त तो पुष्टिमार्गीय भक्त है । कर्नु, अकर्तु, अन्यथा कर्तु, ऐमें जो श्रीपुरुषोत्तम हैं । यो या विरक्त वैष्णव के हृदय में विराजत हैं । तातें इन में अलौकिक सामर्थ्य है. सो ये चाहे सो करि सकत हैं। तव वा राजाने उह वैष्णव सों वुलाई कह्यो, जो - मोकों श्रीगुसांईजी को सेवक करावो। तव वा वैष्णव ने श्रीगुसांईजी- कों विनती पत्र लिस्यो। जो - राज ! एक बेर यहां बेगि पधारोगे । तव श्रीगुसांईजी वा पत्र कों वांत्रि के केतक दिन में राजा के गाम पधारे । तव उह राजा, महादेव की उपासक ब्राह्मन आदि सब गाम श्रीगुसांईजी को सेवक भयो । भावप्रकाग-यामें यह जतायो जो, वैष्णव के कहे को विश्वास रावनी । वैष्णव उपगंत और कोई पदार्थ नाहीं । वैष्णव की कृपा ते मब बात सिद्ध होत हैं। सो यह तीन तूंवा वारी वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो परम कृपापात्र भगवदीय हतो। तातें इनकी वार्ता कहां ताई कहिा ? वार्ता ॥ १३॥