पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/६८

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रामदास खंभाइच के किये। सो ता समै रामदास हू श्रीनाथजी के दरसन किये । सो महा अलौकिक दरसन भए । सो सरीर की सुधि रही नाहीं । सो दरसन के आवेस में मूर्ख खाय के गिरि परे । तव घरी दोई में सुधि आई, तव उठे। तब ये समाचार सब भीतरिया ने आइ के श्रीगुसांईजी आगे कह । तव श्रीगुसांईजी सेन- भोग धरि के वाहिर पधारे । तव रामदास सों पूछे, जो - रामदास ! कहा समाचार है ! तव रामदास श्रीगुसांईजी सों विनती किये, जो - महाराज! आपकी कृपा सों श्रीगोवर्द्धन नाथजी अलौकिक दरसन दिये हैं। सो तामें मन उरमि रह्यो है । तव श्रीगुसांईजी रामदास सों कहे, जो - रामदान ! तुम्हारे अहो भाग्य हे, जो - श्रीनाथजी ने या प्रकार दरसन दिये । ता पाछे समय भए सेन-भोग सराय वीरी अरोगाइ, सेन आरति करि अनोसर करि श्रीगुसांईजी पर्वत ते नीचे उतरे। तव रामदास हू श्रीगुसांईजी के पाछे आये । ता पाठे श्री- गुसांईजी अपनी बैठक में विराजे। तव रामदास श्रीगुसांईजी को दंडवत् करि उठि चले, सो दंडवती सिला आगें आय बैठे। सो सगरी रात्रि श्रीगोवर्द्धननाथजी के स्वरूपानंद की अनुभव किये । पाछे सवेरे वैगि न्हाइ के श्रीगुसांईजी के पास आय ठाढ़े रहे । तव रामदास श्रीगुसांईजी को विनती किये. जो- महाराज ! कृपा करि ब्रह्मसंबंध कराइए । तव श्रीगुसांईजी रामदास सों कहे. जो-तोकों श्रीगोवर्द्धननाथजी के सन्मुख ब्रह्मसंबंध करावेंगे। सिंगार समै । तातं श्रीगोवर्द्धननाथजी के मंदिर में जाय वेठि। तव रामदास पर्वत ऊपर जाय श्रीगोवर्द्धन- नाथजी के मंदिर में बेटे । पाठे श्रीगुसांईजीह स्नान करि ८